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________________ २२६ : जैन महापुराण : कलापरक अध्ययन में भी चीनपट्ट का उल्लेख हुआ है ।१४७ बृहत्कल्पभाष्य में इसका वर्णन चीन के महीन रेशमी वस्त्र के रूप में हुआ है ।१४८ (घ ) प्रावार १४९ : यह वर्तमान दुशाले के समान पुरुषों द्वारा धारण किया जाने वाला वस्त्र था। हेमचन्द्र के ग्रन्थ में 'राजाच्छादनाप्रावराः' १५० का प्रयोग यह स्पष्ट करता है कि राजाओं के ओढ़ने व बिछाने योग्य ऊनी या रेशमी वस्त्र के लिये प्रावार शब्द प्रचलित था। अमरकोश में दुपट्टे एवं चादर के लिये पाँच शब्द-प्रावार, उत्तरासंग, बृहतिका, संव्यान तथा उत्तरीय मिलते हैं । १५१ (ङ) उष्णीष १५२ : इसे साफा या पगड़ी के रूप में पुरुष अपने शीश पर धारण करते थे। अंगविज्जा में भी उष्णीष का उल्लेख है ।१५३ इसे मस्तक पर टोपी के समान पहना जाता था। उष्णीष सादी व कामदार दोनों प्रकार की होती थी ।१५४ ज्ञातव्य है कि जड़े के रूप में सिर के मध्य में बंधी केशसज्जा को भी उष्णीष कहते थे जिसका अंकन कुषाणकाल से तीर्थकर मूर्तियों में मिलने लगता है। (च) चीवर १५५ : चीवर बौद्ध भिक्षुओं का परिधान था जो पीतवर्ण के रेशमी वस्त्र से निर्मित किया जाता था। ब्रह्मचारी एवं श्रमण भी इसे धारण करते थे ।१५६ (छ) परिधान १५७ : यह एक प्रकार का धोती के समान अधोवस्त्र था। (ज) कम्बल १५८ : यह ऊनी वस्त्रों का साधारण बोधक शब्द था। अंगविज्जा में ऊनी वस्त्रों के लिये 'उण्णिक' शब्द व्यवहृत हुआ है ।१५९ इसका प्रयोग रथ के पर्दे के निर्माण में भी होता था। यह भेड़-बकरी के ऊन से निर्मित मुलायम और सुन्दर ऊनी वस्त्र था। (झ) रंग-बिरंगे वस्त्र१६० : अंगविज्जा में श्वेत, लाल, हरे, पीले, मयूर के रंग के समान नीले ( मयूरकग्गीव), गहरे स्लेटी ( करेणूयक ), दो रंगों के (वित्र ) तथा गुलाबी रंग के वस्त्रों के उल्लेख हैं।६१ वस्त्र रंगने वाले को शुद्धरजक कहा जाता था । १६२ (ञ) उपसंव्यान१६३ : यह भी धोती का ही बोधक है । अमरकोश में धोती के लिये अन्तरीय, उपसंव्यान, परिधान एवं अधोंशुक शब्द का प्रयोग किया गया है । १६४ ( ट ) वल्कल१६५ : जैन साधुओं द्वारा वल्कल, कुश एवं पत्रों के वस्त्र पहनने के उल्लेख हैं । १६६ मोतीचन्द्र ने छाल के वस्त्र को वल्कल कहा है जिन्हें बौद्ध भिक्षु पहनते थे।१५० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002115
Book TitleJain Mahapurana Kalaparak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumud Giri
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1995
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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