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________________ सांस्कृतिक जीवन : २२७ (ठ) दुष्यकुटी ( या देवदूष्य )१६८ : इसका प्रयोग तम्बू के रूप में होता था। स्तूप पर चढ़ाये जाने वाले बहुमूल्य वस्त्र देवदूष्य कहलाते थे।६९ भगवतीसूत्र में देवदूष्य को एक प्रकार का दैवी वस्त्र कहा गया है जिसे महावीर ने धारण किया था।१७० (ड) दुकूल १७१ : दुकूल श्वेत, मृदु, स्निग्ध एवं बहुमूल्य वस्त्र था जिसका प्रयोग अधिकांशतः धनी परिवारों में ही होता था। आचारांगसूत्र में गौड़ देश (बंगाल ) में उत्पादित एक विशेष प्रकार के कपास से निर्मित दुकूल वस्त्र का वर्णन मिलता है । १७२ (ढ) कुसुम्भ१७३ : यह लाल रंग का सूती व रेशमी वस्त्र था। संभवतः सम्पन्न लोग रेशमी कुसुम्भ का एवं निर्धन सूती कुसुम्भ का प्रयोग करते थे। (ण) नेत्र१७४ : नेत्र एक बारीक रेशमी वस्त्र था जिसका निर्माण वृक्ष विशेष की छाल से किया जाता था। हरिवंशपुराण में इसके लिये महानेत्र शब्द प्रयुक्त हुआ है । १७५ सर्वप्रथम कालिदास ने नेत्र का उल्लेख किया है ।१७६ (त) एणाजिना१७७ : देवी प्रसाद ने इसे कृष्णमृगचर्म बताया है जिसका प्रयोग तापसी एवं वनवासी वस्त्र तथा आसन के रूप में करते थे। (थ) उपानत्क १७८ : यह पैरों में पहने जाने वाले जूते के समान होता था। बृहत्कल्पसूत्र-भाष्य तथा भगवतीसूत्र में इसके लिये गाय, भैंस, बकरे, भेंड व अन्य वन्य पशुओं के चमड़े के उपयोग का उल्लेख है। १७९ अजंता की कुछ आकृतियों में मोजे जैसा वस्त्र अथवा मोजे के आकार का उपानह देखा जा सकता है ।१८० __ जैन पुराणों में प्रच्छदपट ( चादर ), परिकर ( कमरबन्द ), गल्लक ( गद्दा), उपधान (तकिया) तथा पीताम्बर आदि वस्त्रों का भी उल्लेख मिलता है किन्तु महापुराण में इनका कोई सन्दर्भ नहीं है । १८१ ____वस्त्रों के उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि महापुराण में सूती, रेशमी, ऊनी, चर्म, वल्कल प्रकार के वस्त्रों का विस्तृत विवरण है । वस्त्र व्यक्ति की परिस्थितिनुसार सामान्य एवं बहुमूल्य, रंग-बिरंगे, अलंकृत एवं सादे होते थे। पुरुषों एवं स्त्रियों के कुछ विशेष वस्त्र भी थे जो उन्हीं द्वारा धारण किये जाते थे। सामान्यतः धोती एवं उत्तरीय वस्त्र का ही प्रचलन था। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002115
Book TitleJain Mahapurana Kalaparak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumud Giri
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1995
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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