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________________ सांस्कृतिक जीवन : २२५ (क) अंशुक - बृहत्कल्पसूत्रभाष्य [१३१ की टीका में अंशुक कोमल और चमकीले रेशमी वस्त्र के रूप में वर्णित है । समराइच्चकहा एवं आचारांगसूत्र में भी अंशुक के उल्लेख हैं । १३२ मोतीचन्द्र के अनुसार यह चन्द्रकिरण और श्वेत कमल के सदृश होता था । 133 वासुदेवशरण अग्रवाल के अनुसार यह उत्तरीय वस्त्र था जिसके ऊपर कसीदा द्वारा अनेक प्रकार के नमूने बनाये जाते थे । बाण के अनुसार अंशुक एक स्वच्छ एवं झीना वस्त्र था । पद्मपुराण तथा आदिपुराण में अनेक स्थलों पर अंशुक का उल्लेख है । १३४ बिनावट के आधार पर अंशुक के एकां - शुक, अध्यांशुक, द्वयांशुक तथा त्रयांशुक जैसे भेद किये गये हैं। 8५ अंशुक के निम्नलिखित पाँच प्रमुख उपभेद हैं ११६, (१) सुकच्छायांशुक यह शुआपंखी अर्थात् हल्के हरे रंग का महीन रेशमी वस्त्र था । ( २ ) स्तनांशुक १३७ – यह चोली या पट्ट जैसा वस्त्र था जिससे केवल स्त्रियों का वक्ष-भाग आवर्णित रहता था । इसे उत्तरासंग भी कहा गया । कालिदास ने ऋतुसंहार में स्तनांशुक वस्त्र का उल्लेख किया है । 13 स्तनांशुक का मूर्त अंकन हिंगलाजगढ़ से प्राप्त एवं इन्दौर संग्रहालय में सुरक्षित ल० १०वीं - ११वीं शती ई० की अंबिका मूर्ति में देखा जा सकता है । १३९ (३) उज्ज्वलांशुक १४० : यह श्वेत रंग का झीना वस्त्र था जिसे स्त्रियाँ अपने अधोभाग में साड़ी की भाँति बाँधती थीं । ( ४ ) सदंशुक १४१ : यह स्वच्छ, श्वेत, सूक्ष्म एवं स्निग्ध रेशमी वस्त्र था जिसे तीर्थंकर भी धारण करते थे । ५) पटांशुक १४२ : यह महीन, धवल एवं रेशमी वस्त्र था जिसे कमर पर बाँधा जाता था । ( ख ) क्षौम १४३ : यह अत्यन्त झीना एवं सुन्दर रेशमी वस्त्र था । अंगविज्जा के अनुसार क्षौम दुकूल तथा चीणपट्ट रेशमी वस्त्र थे वासुदेवशरण अग्रवाल के अनुसार यह असम एवं बंगाल में उत्पन्न होने वाली एक प्रकार की घास से निर्मित किया जाता था । १४४ काशी और पुण्ड्र देश क्षौम वस्त्र के लिये प्रसिद्ध था । १४५ ( ग ) चीनपट्ट४ : सम्भवतः चीन में बने पतले रेशमी वस्त्र को hair कहते थे । कुषाणकाल में मध्य एशिया के साथ भारत के व्यापारिक सम्बन्ध के परिणामस्वरूप यह वस्त्र प्रचलन में आया । अंगविज्जा १५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002115
Book TitleJain Mahapurana Kalaparak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumud Giri
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1995
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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