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सांस्कृतिक जीवन : २२१
(ग) कटक ४ : प्राचीनकाल से ही स्वर्ण, रजत, हाथीदाँत एवं शंख निर्मित कटक (कड़ा ) पहनने का प्रचलन था । इसे स्त्री-पुरुष दोनों धारण करते थे । आदिपुराण में रत्नों के बने हुए वीरांगद नामक कटक का उल्लेख है जिसके कान्ति की तुलना विद्युत को कान्ति के साथ की गयी है । ९५ इसी ग्रन्थ में एक अन्य स्थल पर रत्नजटित चमकीले कड़े के लिये दिव्य कटक शब्द प्रयुक्त हुआ है। भगवती सूत्र जैसे आगम जैन ग्रन्थ में कटक के अत्यन्त ढीले होने का उल्लेख मिलता है । १६
(घ) मुद्रिका ( अंगुठी) : यह हाथों की अंगुली में धारण किया जाने वाला एक प्रमुख आभूषण था जिसका प्रचलन प्राचीनकाल में ही स्त्री व पुरुषों में समान रूप से था । मुद्रिकाएँ सामान्यतः सादी होती थीं जिनको खुड्डा भी कहा जाता था । १७ रघुवंश तथा अभिज्ञानशाकुन्तलम् में भी रत्नजटित मुद्रिकाओं के उल्लेख मिलते हैं । " जैन पुराणों में भी स्वर्णनिर्मित, रत्नजटित, पशु-पक्षी, देवता मनुष्य व विभिन्न चिह्न व नामोत्कीर्ण मुद्रिकाओं का उल्लेख है । इसका मूर्त उदाहरण विमल - वसही ( आबू - १२वीं शती ई० ) की अम्बिका मूर्ति में देखा जा सकता है | कर्नाटक से प्राप्त लगभग १२वीं शती ई० की चतुर्भुजा पद्मावती यक्षी की अंगुलियों में भी मुद्रिका देखो जा सकती है ।' पद्मपुराण में मुद्रिका के लिये उर्मिका शब्द प्रयुक्त हुआ है ।'
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कटि आभूषण :
fe आभूषणों में मेखला, कांची, रशना एवं दाम विशेष उल्लेखनीय हैं ।
(क) मेखला १०२ - प्राचीनकाल से ही विभिन्न प्रकार की मेखला का प्रचलन स्त्री व पुरुष दोनों में सामान्यरूप से था । सैन्धव सभ्यता से मनकों और धातु के टुकड़ों से निर्मित मेखला के उदाहरण प्राप्त हुए हैं। 03 भगवती सूत्र में पुरुषों द्वारा मणिमेखला पहनने का उल्लेख है । इसके अतिरिक्त स्वर्णं व रत्नजटित मेखला भी होती थी । रघुवंश व कुमारसम्भव में शिजित ( घुंघरूयुक्त मेखला ) और मुक्ता - मयी मेखला के भी सन्दर्भ मिलते हैं । १०५ विभिन्न प्रकार के मेखला के मूर्त उदाहरण ११वीं - १२वीं शती ई० के ओसियां की जीवन्तस्वामी महावीर और कुंभारिया के पार्श्वनाथ मन्दिर, शान्तिनाथ मन्दिर तथा एलोरा ( गुफा सं०-३२ ) की अम्बिका यक्षी की मूर्तियों में देखे जा सकते हैं ।'
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