SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 233
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २२० : जैन महापुराण : कलापरक अध्ययन कण्ठाभरण७४ : यह पुरुषों द्वारा धारण किया जाता था तथा रत्नजटित होता था । स्त्रक७५ : इसका निर्माण पुष्प, स्वर्ण, मुक्ता तथा रत्नों द्वारा होता था । 3 कांचनसूत्र : यह सुवर्ण या रत्नयुक्त कण्ठाभूषण था । इनके अतिरिक्त ग्रैवेयक ७, हारलता, हारवल्ली, हारवल्लरी, मणिहार ७९, हाटक, मुक्ताहार", कण्ठिकार तथा कण्ठिकेवास '" कण्ठ के अन्य आभूषण थे । कण्ठिकेवास को देवी प्रसाद मिश्रा ने लाख की बनी हुयी कण्ठी और गले के ऊपर वर्णित आभूषणों में इसे निम्न कोटि का बताया है । ४ स्वर्ण, मोतो, मणि तथा रत्न युक्त कण्ठाभूषणों के अतिरिक्त सन्तानक, पारिजात तथा अन्य प्रकार के पुष्पों की मालाओं से भी सौन्दर्य वृद्धि की जाती थी । ५ कराभूषण : अंगद, केयूर, वलय, कटक तथा मुद्रिका हाथ के प्रमुख आभूषण थे जिनका स्त्री-पुरुष दोनों में समान रूप से प्रचलन था । इन सभी कराभूषणों के आकार-प्रकार में स्पष्टतः अन्तर मिलता है । पुरुषों में ये आभूषण सादे होते थे किन्तु स्त्रियों द्वारा धारण किये जाने वाले इन आभूषणों में घुंघरु लगे होते थे । '६ --- (क) अंगद : अंगद पीछे की ओर बाँधकर पहना जाने वाला आभूषण था जिसे स्त्री-पुरुष समान रूप से धारण करते थे । क्षीरस्वामी ने केयूर और अंगद की व्युत्पत्ति बताते हुए लिखा है - ' के बाहूशीर्षे यौति केयूरम्' अर्थात् जो भुजा के ऊपरी छोर को सुशोभित करे उसे केयूर कहते हैं और 'अंग दयते अंगदम' अर्थात् जो अंग को निपीड़ित करे वह अंगद है।“ अंगद का उल्लेख कालिदासकृत रघुवंश में भी आता है । " बाहुओं को सुशोभित करने वाले मुक्ता निर्मित भुजबंध के उदाहरण एलोरा के गुफा सं० ३२ को अम्बिका आकृति में स्पष्टतः देखे जा सकते हैं । १० ९१ (ख) केपूर : यह भी भुजबंध का ही एक प्रकार था जिसे स्त्रीपुरुष दोनों अपनी भुजाओं पर धारण करते थे । कालिदास ने केयूर में नोक होने का उल्लेख किया है । १२ कंयूर स्वर्ण निर्मित व रत्नजटित होता था । इसका उल्लेख जैन महापुराणों में अनेक स्थलों पर हुआ है। ९३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002115
Book TitleJain Mahapurana Kalaparak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumud Giri
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1995
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy