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सांस्कृतिक जीवन : २१९ (७) गुच्छ हार : मोतियों की ३२ लड़ियों वाला हार गुच्छ हार था।
(८) नक्षत्रमाला हार : इसमें २७ लड़ियाँ होती थीं। इसकी मोतियाँ अश्विनी, भरणी आदि नक्षत्रावली की शोभा का उपहास करने वाली बतायी गयी हैं । ६७ इस हार की आकृति भी नक्षत्रमाला के समान होती थी। __(९) अर्धगुच्छ हार : मोतियों की २४ लड़ियों के हार को अर्धगुच्छ हार कहा गया है । ___ (१०) माणव हार : माणव हार में मोती की कुल बीस लड़ियाँ होती थीं।
(११) अर्धमाणव हार : १० लड़ियों के हार को अर्धमाणव हार कहा गया है। इसके मध्य में जब मणि लगा होता था तो यही हार फलकहार कहलाता था। इसी फलकहार में जब सोने के तीन फलक (सुवर्ण के गोल दाने) लगे होते थे तो वह सोपान तथा जिसमें सोने के पाँच फलक लगे होते थे वह मणिसोपान कहलाता था। सोपान नामक हार में केवल सुवर्ण के ही फलक होते थे जबकि मणिसोपान नामक हार में रत्नजटित सुवर्ण के फलक लगे होते थे ।७० । । उपरोक्त हारों के मध्य में जब मणि लगा होता था तब उनके नामों के साथ 'माणव' शब्द जोड़ दिया जाता था। उदाहरणार्थ इन्द्रच्छन्दमाणव, विजयच्छन्दमाणव, हारमाणव इत्यादि। इसी प्रकार उपरोक्त ११ प्रकार के हारों में प्रत्येक के साथ यष्टि के ५ प्रकारों शीर्षक, उपशीर्षक, अवघाटक, प्रकाण्डक एवं तरल प्रतिबन्ध को भी सम्मिलित कर लिया जाय तो कुल मिलाकर हार के ५५ प्रकार प्राप्त होते हैं । १
नेमिचन्द्र ने इन्द्रच्छन्द, विजयच्छन्द, देवच्छन्द, रश्मिकलाप, गुच्छ, नक्षत्रमाला, अर्धगुच्छ, माणव, अर्धमाणव, इन्द्रच्छन्दमाणव तथा विजयच्छन्दमाणव के भेद से यष्टि के ११ भेदों का उल्लेख किया जो असंगत प्रतीत होता है ।७२ (ग) गले के अन्य आभूषणः
जैन पुराणों में जिन अन्य कण्ठाभूषणों का उल्लेख मिलता है वे निम्नलिखित हैं
कण्ठमालिका 3 : इसे स्त्री व पुरुष दोनों ही धारण करते थे।
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