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अन्य देवी-देवता : १९५ या चरणचिह्न प्रतिष्ठित था और शिखर पर अंबिका की मूर्ति थी। वर्तमान में यहाँ सबसे प्रसिद्ध व विशाल जैन मंदिर नेमिनाथ मंदिर है जिसका निर्माण चालुक्य नरेश जयसिंह के दंडाधिप सज्जन ने ११८५ ई० में कराया था।३५ यहाँ का दूसरा उल्लेखनीय मंदिर वस्तुपाल द्वारा निर्मित मल्लिनाथ तीर्थंकर का है।
जैन मंदिर को दो भागों में विभक्त किया जा सकता है-घर देरासर ( या गृह मंदिर ) और पाषाण या काष्ठ में निर्मित मंदिर। घर देरासर गुजराती जैन समाज की अपनी एक विशेषता है और ऐसा मंदिर प्रायः प्रत्येक घर में होता है। गुजरात व दक्षिण भारत के हिन्दू घरों में भी गह-मंदिर होते हैं। किन्तु जैन देरासरों की अपनी पृथक विशेषताएँ हैं । घर में इन देरासरों का निर्माण पाषाण या काष्ठ निर्मित मंदिरों को लघु अनुकृति के रूप में परिवार के सदस्यों द्वारा किया जाता है। सूक्ष्म शिल्पांकन और रंगों आदि से इनका अलंकरण भी होता है। पाषाण या काष्ठ निर्मित प्रत्येक जैन मंदिर के चारों ओर सामान्यतः प्राचीर होती है जिसके अन्तर्भाग में तीर्थंकरों के देवकोष्ठ होते हैं । ३६
बाह्मण मंदिरों की ही भाँति जैन मंदिरों के भी दो मुख्य भाग होते हैं-मण्डप (या गढ़ मण्डप) जिसमें भक्त एकत्र होते हैं और मुख्य मंदिर (गर्भालय या गर्भगृह या मूलप्रासाद ) जिसमें इष्टदेव की प्रतिमा प्रतिष्ठित होती है। मण्डप की संयोजना पंक्तिबद्ध स्तम्भों पर होती है। वे तोरणों व धरनों को आश्रय प्रदान करते हैं जिनपर विस्तृत अलंकरण होते हैं ।३७ मण्डप के कई भेद हैं-(१) प्रासाद कमल (गर्भगृह या मंदिर का मुख्य भाग ), (२) त्रिकमण्डप (जिसमें स्तम्भों की तीन-तीन पंक्तियों द्वारा तीन आड़ी और तीन खड़ी वीथियाँ होती हैं ), (३) गूढ़मण्डप (भित्तियों से घिरा हुआ मण्डप), (४) रंगमण्डप ( या सभामण्डप), (५) सतोरण बलानक ( मेहराबदार चबूतरे)।३८ शिखर के रूप में वर्तालुकार छत होती है जो ऊपर की ओर ऊँची होती जाती है। आदिपुराण में जिन मंदिर के शिखर के अग्रभाग पर वायु से हिलती पताकाओं का उल्लेख है।३९ जैन मंदिरों के द्वार की चौड़ाई ऊँचाई की आधी और चौखट पर यथोचित स्थान पर तीर्थंकरों, प्रतिहार युगल, मदनिका आदि की आकृतियों को उल्कीर्ण करने का उल्लेख है। जगती को आधार मानकर ही मंदिर का निर्माण होता है ।४०
आदिपुराण में ऊँचे मणिमय शिखरों से युक्त जिन मंदिर का उल्लेख
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