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________________ १९४ : जैन महापुराण : कलापरक अध्ययन पार्श्वनाथ सबसे बड़ा है। वर्तमान में सान्धार शैली के इस मन्दिर ( ल०९५०-७० ई० ) में अर्धमण्डप, महामण्डप, अन्तराल व गर्भगृह सुरक्षित हैं और वे एक ही प्रदक्षिणा मार्ग से घिरे हुए हैं। गर्भगृह से सटकर पीछे पश्चिम की ओर एक पृथक् देवालय भी बना हुआ है जो इस मन्दिर की एक अभिनव विशेषता है । मंडप की छत का उत्कोर्णन उत्कृष्ट शैली का है । छत के मध्य में लोलक को बेलबूटों व उड़ती हुई मानवाकृतियों से अलंकृत किया गया है । प्रवेशद्वार पर गरुडवाहिनी दशभुजी चक्रेश्वरी की मूर्ति तथा गर्भगृह की बाह्य भित्तियों पर अप्सराओं, जिनों एवं ब्राह्मण देवों की मनोहारी मूर्तियाँ उकेरी हैं । 30 खजुराहो के जैन मन्दिरों में शिखर की रचना को विशेष महत्त्व दिया गया है । जैनधर्म को ग्वालियर व दुबकुण्ड के कच्छपघाट शासकों का भी समर्थन प्राप्त था जिसके फलस्वरूप जैन मन्दिरों के लिये इनके द्वारा दान दिये जाने के उल्लेख प्राप्त होते हैं । 39 कल्चुरी शासकों द्वारा जैन घर्मं के समर्थन से सम्बन्धित बहुरिबन्ध लेख के अनुसार गयाकर्ण के राज्य में सर्वधर के पुत्र महाभोज द्वारा शान्तिनाथ के मन्दिर का निर्माण करवाया गया । १२ जैन तीर्थों में सौराष्ट्र प्रदेश के शत्रुञ्जय ( पालीताणा ) पर्वत पर जितने जैन मन्दिर हैं, उतने अन्यत्र कहीं नहीं हैं । शत्रुञ्जय माहात्म्य के अनुसार यहाँ प्रथम तीर्थंकर के काल से ही जैन मन्दिरों का निर्माण होता आया है । 33 सौराष्ट्र का दूसरा महान तीर्थक्षेत्र गिरनार (अर्जयन्त या रैवतक ) है जहाँ नेमिनाथ ने निर्वाण प्राप्त किया । जैन ग्रन्थों में भी मन्दिरों के निर्माण का उल्लेख मिलता है । हरिवंशपुराण की प्रशस्ति में जिनसेन ने स्पष्ट उल्लेख किया है कि शक संवत् ७०५ ( ७८३ ई० ) से उन्होंने वर्धमानपुर के पार्खालय ( पार्श्वनाथ मंदिर ) की अन्नराज - वसति में बैठकर हरिवंशपुराण की रचना की और उसके शेष भाग को वहीं के शान्तिनाथ मंदिर में पूरा किया। इससे वर्धमानपुर में ( वर्तमान बदनावर ) ८वीं शती ई० में ही पार्श्वनाथ एवं शान्तिनाथ के दो जैन मंदिरों का होना सिद्ध होता है । यह मन्दिर ४०० वर्ष तक विद्यमान रहा । ३४ गिरनार के तीर्थं का सर्वप्राचीन उल्लेख समन्तभद्रकृत वृहत्वयंभूस्त्रोत ( ल० ५वीं शती ई० ) में मिलता है जिसके अनुसार समन्तभद्र के समय अर्जयन्त ( गिरनार ) पर्वत पर नेमिनाथ की मूर्ति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002115
Book TitleJain Mahapurana Kalaparak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumud Giri
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1995
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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