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१८० : जैन महापुराण : कलापरक अध्ययन पत्थर की ५७ फीट ऊँची गोम्मटेश्वर बाहुबली की प्रतिमा दिगम्बर परम्परा में उनके गौरवपूर्ण स्थान का सूचक है (चित्र ४९ ) । देवगढ़, खजुराहो जैसे दिगम्बर स्थलों पर ल० ९वीं से १२वीं शती ई० के बीच बाहुबली की मूर्तियों में तीर्थंकर मूर्तियों के समान अष्ट-प्रातिहार्यों एवं दो उदाहरणों में ( देवगढ़ मन्दिर ११ एवं खजुराहो का शान्ति प्रसाद जैन संग्रहालय ) यक्ष-यक्षी युगल को भी निरुपित किया गया है जो स्पष्टतः बाहुबली की विशेष प्रतिष्ठा का सूचक है। आज भी अनेक दिगम्बर जैन तीर्थों एवं मन्दिरों में बाहुबली की प्रतिमाएँ तीर्थंकरों के ही समान पूजित हैं । ११६
श्वेताम्बर परम्परा के स्थानांग एवं समवायांगसूत्र जैसे आगम ग्रन्थों में बाहुबली के शरीर की ऊँचाई एवं आयुष्य के अतिरिक्त उनके जीवन वृत्त के सम्बन्ध में कोई विस्तृत जानकारी नहीं मिलती। जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति तथा कल्पसूत्र सहित श्वेताम्बर परम्परा का सम्पूर्ण आगम साहित्य बाहुबली जीवनवृत्त के सम्बन्ध में मौन है किन्तु श्वेताम्बर आगम साहित्य की टीकाओं-( आवश्यक नियुक्ति, आवश्यकभाष्य, विशेषावश्यकभाष्य, आवश्यकचूणि, निशीथचूर्णि, कल्पसूत्रवृत्ति, आचारांगटीका और स्थानांगटीका) एवं पउमचरिय, वसुदेवहिण्डी, चउपन्न महापूरिसचरियं तथा त्रिषष्टिशलाकापूरुषचरित्र जैसे कथा साहित्य में बाहुबली का जीवनवृत्त विस्तार के साथवर्णित है। ११७ दिगम्बर परम्परा के पौराणिक साहित्य जैसे-हरिषेणकृत पद्मपुराण, स्वयम्भूकृत पउमचरिउ, जिनसेनकृत आदिपुराण, रविष्णकृत पद्मपुराण, जिनसेनकृत हरिवंशपुराण आदि में बाहुबली के जीवनवृत्त का विस्तार के साथ उल्लेख हुआ है। ____ आदिपुराण में वर्णित बाहुबली के जीवनवृत्त के अनुसार वृषभदेव के ज्येष्ठ पुत्र भरत चक्रवर्ती ने जब दिग्विजय के उपरान्त अपने एक दूत द्वारा भाईयों के पास अधीनता स्वीकार करने का सन्देश भेजा तो बाहबली, जो भेद, दण्ड तथा साम इन तीनों ही उपायों द्वारा अजेय थे, के अतिरिक्त अन्य सभी भाईयों ने भरत की अधीनता स्वीकार कर ली। फलस्वरूप भरत और बाहुबली के बीच युद्ध अपरिहार्य हो गया । युद्ध की स्थिति में मंत्रियों ने भाई-भाई के इस युद्ध में व्यर्थ ही सेना के संहार को रोकने हेतु इनके मध्य नेत्र, जल तथा मल्लयुद्ध का परामर्श दिया।११८ जिनसेन को छोड़कर अधिकांश दिगम्बर परम्परा के आचार्यों ने भरत
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