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अन्य देवी-देवता : १७९
नाग-पूजा:
जैन ग्रन्थों में नाग-पूजन के प्रचुर उल्लेख मिलते हैं जो लोक-पूजन की जैनधर्म में प्रतिष्ठा के सूचक हैं। भारतीय लोकधर्म में नाग-पूजन प्रारम्भ से ही लोकप्रिय रहा है ।१११ भारत के सभी क्षेत्रों से नागों की अनेक स्वतन्त्र मूर्तियाँ मिली हैं जो नाग-पूजन की लोकप्रियता की साक्षी हैं । लोकधर्म के साथ-साथ ब्राह्मण, जैन और बौद्ध धर्मों में भी नागों की उपदेवता के रूप में मान्यता है। श्रावण मास के पंचमी के दिन इनकी उत्पत्ति की मान्यता के कारण ही नाग पंचमी के रूप में प्रायः सम्पूर्ण भारत में नाग पूजन की परम्परा व्यवहार में है। २३वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ के लांछन के रूप में सर्प का उल्लेख और अंकन मिलता है। साथ ही तीर्थंकर सुपार्श्वनाथ और पार्श्वनाथ के शीर्ष भागों में सर्पफणों के छत्र के रूप में भी नाग का उल्लेख और अंकन मिलता है। एलोरा की पार्श्वनाथ मतियों में भी सिर पर सात सर्पफणों के छत्र तथा पृष्ठ भाग में सर्प की कुण्डलियों का सुन्दर अंकन हुआ है (चित्र १३, १४)।
जैनधर्म के अन्तर्गत पाताल स्वर्ग में रहने वाले नाग कुमार देवों को भवनवासी देवों के अन्तर्गत रखा गया है और धरणेन्द्र को उनका प्रमुख इन्द्र माना गया है ।११२ तीर्थंकर पार्श्वनाथ की कमठ (शंबर ) द्वारा प्रस्तूत उपसर्गों से रक्षा के लिये धरणेन्द्र का उन्हें अपने फणों पर उठा लेने का सन्दर्भ जैनधर्म में नागदेव की प्रमुखता एवं पूजन की परम्परा को दर्शाता है । ११3 आदिपुराण तथा उत्तरपुराण में नागकुमार जाति के ऐसे देवों का उल्लेख मिलता है जो प्रसन्न हो विभिन्न प्रकार की दिव्य वस्तुएँ जैसे-मुकुट, चामर, छत्र, बाण, आकाश में चलने वाली पादुकाएँ प्रदान करते थे । ११४ उत्तरपुराण में एक अन्य स्थल पर सुन्दर कमलों से युक्त सरोवरों में निवास करने वाले निषध, देवकुरु, सूर्प, सुलसु, विद्युत्प्रभ, नीलवान, उत्तरकुरु, चन्द्र, ऐरावत तथा माल्यवान नामक नागकुमार देवों का उल्लेख आया है । ११५ गोम्मटेश्वर बाहुबली:
ऋषभदेव के पुत्र भरत और बाहुबली के जीवन वृत्त का उल्लेख यद्यपि जैनधर्म के दोनों ही परम्पराओं में समान रूप से हुआ है किन्तु दिगम्बर परम्परा में बाहुबली के प्रति विशेष आदर भाव देखा जाता है। ल० ९८३ ई० की श्रवणबेलगोल (हसन, कर्नाटक ) की एकाश्मक
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