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________________ अन्य देवी-देवताः १६९ सुरवधिका), विंध्यवासिनी देवी, गंगा व सिंधु देवी तथा सरस्वती आदि देवियाँ प्रमुख हैं।२९ इन्द्र : आगम तथा परवर्ती ग्रन्थों में अनेक स्थलों पर इन्द्र का उल्लेख मिलता है । जैन परम्परा में इन्द्र३° को जिनों का प्रधान सेवक स्वीकार किया गया है तथा जिनों के पंचकल्याणकों एवं समवसरण रचना के सन्दर्भ में इनका उल्लेख आता है । प्रत्येक जिन के समवसरण में इन्द्र ही शासनदेवता के रूप में यक्ष और यक्षी की नियुक्ति करते हैं। श्वेताम्बर परम्परा में इनके शक्र नाम के अतिरिक्त आखण्डल, वज्रिन, पुरन्दर, वज्रमत जैसे ४२ नामों का उल्लेख है तथा इनकी पत्नी के शची, इन्द्राणी, पौलोभी, जयवाहिनी आदि नाम बताये गये हैं।३१ स्थानांगसूत्र में नामेन्द्र, स्थापनेन्द्र, द्रव्येन्द्र, ज्ञानेन्द्र, दर्शनेन्द्र, देवेन्द्र, असुरेन्द्र तथा मनुष्येन्द्र आदि कई इन्द्रों का तथा जिनों के जन्म, दीक्षा और कैवल्य प्राप्ति के अवसरों पर देवेन्द्र के शीघ्रता से पृथ्वी पर आने का उल्लेख है ।३२ कल्पसूत्र में वज्र धारण करने वाले और ऐरावत गज पर आरूढ़ शक्र का देवताओं के राजा के रूप में तथा पउमचरिय में इन्द्र द्वारा जिनों के जन्म, अभिषेक और समवसरण के निर्माण के उल्लेख हैं।33 अन्य स्थलों पर इन्द्र को ऐरावत गज पर आरूढ़, असुर विजेता,३४ सहस्राक्ष तथा वज्रपाणि३६ कहा गया है । तीर्थंकरों के पंचकल्याणकों के सन्दर्भ में विशेष रूप से सौधर्म इन्द्र का ही उल्लेख आता है। पुष्पदन्त के महापुराण में इन्द्र को अनेक मुखों तथा नेत्रों वाला बताया गया है।३७ एक अन्य स्थल पर सौधर्मेन्द्र को हजार नेत्रों व बाहुओं वाला कहा गया है। इन्हें वज्र लिये हुये ईशान स्वर्ग का राजा बताया गया है । इन्द्र का वाहन गज, वृषभ तथा विमान माना गया है। महापुराण में अनेक सन्दर्भो में इन्द्र का उल्लेख हआ है । इन्द्र का उल्लेख नगर के प्रमुख रचनाकार के रूप में भी आता है जिसका उदाहरण इन्द्र द्वारा ऋषभदेव के माता-पिता, मरुदेवी व नाभिराज के रहने के लिये अयोध्या नामक नगरी की रचना है। इन्द्र की आज्ञा से ही कुबेर द्वारा रत्नों की वर्षा करने का उल्लेख मिलता है। इन्द्र को देवों का अधिपति व सहस्त्राक्ष (हजार नेत्रों वाला) कहा गया है।३९ सभी स्वर्ग के अलग-अलग जैसे-सौधर्म स्वर्ग के सौधर्मेन्द्र तथा ऐशान स्वर्ग के ऐशान इन्द्र आदि की कल्पना की गयी है। इन्हें ऐरावत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002115
Book TitleJain Mahapurana Kalaparak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumud Giri
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1995
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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