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________________ १७० : जैन महापुराण : कलापरक अध्ययन गज पर आरूढ़ बताया गया है । ४० अन्य देवों में न पाये जाने वाले अणिमा- महिमा आदि गुणों से जो परम ऐश्वर्य को प्राप्त हों, उन्हें इन्द्र कहा गया है । ४१ इन्द्र को सात प्रकार के देवों - सामनिकदेव. त्रायस्त्रशदेव, पारिषद, आत्मरक्ष, लोकपाल, अनीक तथा प्रकीर्णक से घिरा हुआ बताया गया है । आदिपुराण में ३२ प्रमुख इन्द्रों का उल्लेख मिलता: है किन्तु उनके नामों की सूची नहीं दी गयी है । इनमें १० भवनवासी वर्ग के, ८ व्यन्तर वर्ग के, २ ज्योतिषी वर्ग के तथा १२ कल्पवासी वर्गं के इन्द्र हैं । ४२ ऋषभदेव के जन्म के अवसर पर इन्द्र द्वारा विभिन्न प्रकार के 'नृत्य व नाटक करने का भी उल्लेख है जो अप्सरादि द्वारा इन्द्र के दरबार में नृत्य-संगीत के कार्यक्रमों से सम्बन्धित है | तीर्थंकरों के जन्माभिषेक पर इन्द्र द्वारा ३२ प्रकार के नृत्य करने का उल्लेख हुआ है किन्तु जैन मन्दिरों में इन्द्र के इन नृत्यों का अंकन कठिनाई से कहीं-कहीं प्राप्त होता है । विमलवसही ( माउण्ट आबू) में चार भुजाओं वाली इन्द्र की नृत्यरत मूर्ति का अंकन मिलता है ।४४ निर्वाण के बाद तीर्थंकर की अन्त्येष्टि के लिये सौधर्मेन्द्र के आने का उल्लेख मिलता है । ४५ ४३ यू० पी० शाह ने श्वेताम्बर व दिगम्बर दोनों ही परम्पराओं के आधार पर ६४ इन्द्रों की सूची उनकी प्रतिमालाक्षणिक विशेषताओं के साथ प्रस्तुत की है जो मुख्यरूप से आचारदिनकर पर आधारित है । यद्यपि प्रतिष्ठासारोद्धार एवं प्रतिष्ठातिलक में भी इन्द्रों का उल्लेख है किन्तु उसके सभी ध्यानश्लोकों में उनकी प्रतिमालाक्षणिक विशेषताएँ नहीं दी गयी हैं । ४६ इस प्रकार इन्द्र का वाहन गज तथा मुख्य आयुध वज्र और अंकुश हैं। ओसियाँ, देलवाड़ा, कुम्भारिया, खजुराहो एवं अन्य स्थलों पर तीर्थंकरों के जीवन दृश्यों के प्रसंग में इन्द्र का अनेकशः शिल्पांकन हुआ है जिनमें इन्द्र अधिकांशतः चामर या कलशधारी और जन्मकल्याणक के प्रसंग में शिशु जिन को गोद में लिये, दीक्षाकल्याणक के प्रसंग में लुंचित केश लिये तथा समवसरण में प्रथम धर्मदेशना के अवसर पर उपस्थित दिखाये गये हैं । नाडोल (पाली, राजस्थान) के नेमिनाथ: मन्दिर एवं कुम्भारिया के कुछ उदाहरणों में बालक ( जिन) को गोद में लिये इन्द्र चतुर्भुज हैं । इन्द्र के दो हाथ गोद में हैं तथा अन्य दो हाथों में अंकुश तथा वज्र हैं । ४७ इसके अतिरिक्त जैन मन्दिरों पर सर्वत्र अष्ट Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002115
Book TitleJain Mahapurana Kalaparak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumud Giri
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1995
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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