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अन्य देवी-देवता : १६७
पुरुषोत्तम, सत्पुरुष, महापुरुष, पुरुषप्रभ, अतिपुरुष, मरु, मरुदेव, मरुप्रभ तथा यशस्वान; महोरग को १०–भुजग, भुजंगशालि, महातनु, अतिकाय, स्कंधशालि, मनोहर, अश्निजव, महेश्वर, गंभीर तथा प्रियदर्शन एवं गन्धर्व५ को ६०-हाहा, हह, नारद, तुम्बर, वासव, कदम्ब, महास्वर, गीतरति, गीतरस व वज्रवान वर्गों में विभक्त किया गया है । १० __ दोनों ही परम्पराओं के अनुसार व्यन्तर देवों के अन्तर्गत आने वाले पिशाच देव काले वर्ण के किन्तु देखने में सुन्दर तथा विभिन्न प्रकार के रत्नों के आभूषणों से सुसज्जित होते हैं। काल व महाकाल इनके दो इन्द्र हैं। ___ दोनों ही परम्पराओं के अनुसार भूत वर्ग के सभी देवों का वर्ण काला है। यक्ष काले वर्ण के, सुदर्शन, किरीटमुकुट तथा अन्य आभूषणों से सज्जित होते हैं। पूर्णभद्र तथा मणिभद्र यक्ष इनके दो प्रमुख इन्द्र हैं। ज्ञातव्य है कि पूर्णभद्र एवं मणिभद्र जैन परम्परा के प्राचीनतम यक्ष हैं जिनसे कालान्तर में कुबेर या सर्वानुभूति यक्ष का विकास हुआ है ।
राक्षस वर्ग के देव काले वर्ण के, सुवर्ण के आभूषणों से अलंकृत तथा भयंकर दर्शन वाले होते हैं । इनके इन्द्र भीम व महाभीम हैं । १७ दोनों ही परम्पराओं में किन्नर वर्ग के देवों को सुदर्शन और श्याम वर्ण बताया गया है । मुकुटधारी किन्नरों की ध्वजा पर अशोक वृक्ष चिह्नित होता है।१८ किम्पुरुष श्वेताम्बर परंपरा के अनुसार श्वेतवर्ण के होते हैं तथा इनके हाथ व पैर देखने में सुन्दर होते हैं। ये विभिन्न आभूषण धारण करते हैं तथा चंदन से अपने ऊपर अनेक चिह्न अंकित करते हैं । ____ महोरग वर्ग के देव काले वर्ण के होते हैं। दिगम्बर परंपरा के अनुसारे नागवृक्ष उनका चैत्य वृक्ष है और श्वेताम्बर परंपरा के अनुसार उनके आगे नाग का चिह्न होता है ।२० दिगम्बर परपंरा के अनुसार गन्धर्व के देव सुवर्ण वर्ण के तथा श्वेताम्बर के अनुसार काले वर्ण के होते हैं । ये देखने में सुन्दर तथा मुकुट व हार से सज्जित होते हैं। दोनों ही परम्पराओं के अनुसार तुम्बरू उनका चिह्न है। देवताओं के चतुर्वर्ग की उपर्युक्त सूची से स्पष्ट है कि लोकपूजन से सम्बन्धित यक्ष, नाग आदि तथा गंधर्व-किन्नर जैसे देवताओं को भी जैन देवकुल में सम्मानजनक स्थान दिया गया। खजुराहो, देवगढ़, कुंभारिया, देलवाड़ा एवं एलोरा जैसे स्थलों पर यक्षों, नागों, गन्धर्वो, किन्नरों आदि का बहुतायत से अंकन हुआ है।
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