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________________ १६६ : जैन महापुराण : कलापरक अध्ययन भवनवासी देव दिगम्बर व श्वेताम्बर परम्परा के अनुसार' : वर्ग मुकुट पर चिह्न ( श्वेताम्बर ) चूड़ामणि १- असुरकुमार २- नागकुमार ३ - सुपर्णकुमार ४- द्वीपकुमार ५ - उदधिकुमार ६- स्तनितकुमार ७- विद्युतकुमार ८- दिक्कुमार ९- अग्निकुमार मुकुट पर चिह्न ( दिगम्बर ) चूड़ामणि सर्प चील गज घड़ियाल स्वस्तिक Jain Education International वज्र सिंह कलश १० - वायुकुमार अश्व श्वेताम्बर परम्परा के अनुसार सभी असुरकुमार देव काले वर्ण के होते हैं, उनके होंठ लाल, दाँत श्वेत तथा केश काले होते हैं । उनके बायें कान में कुण्डल तथा शरीर चन्दन के लेप से आच्छादित होता है । वे लाल वस्त्र धारण करते हैं एवं सदैव सुन्दर और यौवनपूर्ण होते हैं । उनका वक्ष मणिरत्न हारों से तथा केश अनेक आभूषणों से विभूषित रहता है । उनकी दसों अँगुलियों में मुद्रिका व मुकुट पर चूड़ामणि होता है । १० व्यन्तर देव : सर्प चील सिंह अश्व वर्धमानक For Private & Personal Use Only वज्र गज व्यन्तर देवों को दोनों परम्पराओं में आठ प्रमुख वर्गों में विभक्त किया गया है तथा इनका निवास रत्नप्रभा पृथ्वी में माना गया है । ये क्रमशः पिशाच, भूत, यक्ष, राक्षस, किन्नर, किम्पुरुष, महोरग तथा गन्धर्व हैं 119 दिगम्बर परम्परा के अनुसार पिशाच को पुनः १४ वर्गोंकुष्माण्डा, यक्ष, राक्षस, समोह, तारक, असुसिनामक, काल, महाकाल, सुचि, सतालक, देह, महादेह, तुष्णिक तथा प्रवचन; भूत को ७ स्वरूपोंप्रतिरूप, भूतोत्तम, महाभूत, प्रतिचन्न तथा आकाशभूत १२, यक्ष को १२मणिभद्र, पूर्णभद्र, शैलभद्र, मनोभद्र, भद्रक, सुभद्र, शर्वभद्र, मानुष, धनपाल, सरूप, यक्षोत्तम तथा मनोहरण; राक्षस को ७ - भीम, महाभीम, विनायक, उदक, राक्षस, राक्षस- राक्षस तथा ब्रह्मराक्षस, किन्नर के ९ – किन्नर, किम्पुरुष, हृदयंगम, रूपपालि, किन्नर - किन्नर, अनिन्दित, मनोरम, किन्नरोत्तम तथा रतिप्रिय; १४; किम्पुरुष को १० - पुरुष, 93 जलपात्र मकर -- www.jainelibrary.org
SR No.002115
Book TitleJain Mahapurana Kalaparak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumud Giri
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1995
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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