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________________ षष्ठ अध्याय अन्य देवी-देवता आगम ग्रन्थों में जैन देवताओं को चार प्रमुख वर्गों में विभाजित किया गया है-भवनवासी ( एक स्थल पर निवास करने वाले ), व्यन्तर या वाणमन्तर ( भ्रमणशील), ज्योतिष्क ( आकाशीय नक्षत्र से सम्बन्धित ) तथा वैमानिक या विमानवासी (स्वर्ग के देव ) ।' पहले वर्ग में १०, दूसरे में ८, तीसरे में ५ तथा चौथे में २० देवताओं के नाम मिलते हैं । देवताओं का यह विभाजन निरन्तर मान्य रहा तथा श्वेताम्बर व दिगम्बर दोनों ही परम्पराओं ने जैन देवकुल के इस वर्गीकरण को सामान्य रूप से स्वीकार किया। आदिपुराण में भी कल्पवासी, ज्योतिष्क, व्यंतर तथा भवनवासी देवों के चार वर्गों का वर्णन मिलता है । पुष्पदन्त ने महापुराण में भवनवासी वर्ग में दस, व्यन्तर में आठ, ज्योतिष्क में पाँच तथा कल्पवासी वर्ग में सोलह प्रकार के देवों का उल्लेख किया है। भवनवासी देव: भवनवासी देवों के कुल सात करोड, बहत्तर लाख भवन हैं। इन्हें नाना प्रकार का शरीर धारण करने वाला माना गया है।६ भवनवासी देवों का निवास रत्नप्रभा पृथ्वी में उत्तर और दक्षिण की ओर बताया गया है। श्वेताम्बर व दिगम्बर दोनों ही परम्पराओं में भवनवासी देवों के अन्तर्गत असुर, नाग, सुवर्ण, द्वीप, उदधि, स्तनित, विद्युत, दिक्कूमार, अग्नि तथा वायुकुमार देव आते हैं। इन सभी देवों के अपने कुछ चिह्न होते हैं जो उनके मुकुट के अग्रभाग पर अंकित होते हैं। दोनों परम्पराओं में इन चिह्नों के सन्दर्भ में पर्याप्त भिन्नता मिलती है जिसे निम्न तालिका द्वारा स्पष्ट किया गया है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002115
Book TitleJain Mahapurana Kalaparak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumud Giri
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1995
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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