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१६४ : जैन महापुराण : कलापरक अध्ययन ६९. मारुतिनन्दन तिवारी एवं कमलगिरि, 'विमलसूरिकृत पउमचरिय में
प्रतिमाविज्ञानपरक सामग्री', पं० दलसुख मालवणिया अभिनन्दन ग्रन्थ I,
वाराणसी १९७१, पृ० १५७ । ७०. वही। ७१. हरिवंशपुराण २२.५४-७३ । ७२. त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र १.३.१२४-२२६ । ७३. हरिवंशपुराण २२.६१-६६ । ७४. यू० पी० शाह, पू० नि०, पृ० ११६-१७ । ७५. यक्ष-यक्षी युगलों के स्थान पर महाविद्याओं का निरूपण इस ओर संकेत
देता है कि १६ महाविद्याओं की सूची २४ यक्ष-यक्षियों की अपेक्षा कुछ प्राचीन थो। दिगम्बर परम्परा में अधिकांश यक्षियों के नाम भी महा
विद्याओं से ग्रहण किये गये । ७६. उत्तरपुराण ६२.३८७-४०१, ४११ । ७७. उत्तरपुराण ६८.४६८-४६९। ७८. उत्तरपुराण ६८.५१३-५१४ । ७९. उत्तरपुराण ६८.५२०-५२१; महापुराण (पुष्पदतन्कृत ) ७.४ । ८०. उत्तरपुराण ६८.६१८-६१९ । ८१. महापुराण (पुष्पदन्तकृत ) ६१.१ । ८२. यू० पी० शाह, पू० नि०, पृ० ११९-२० । ८३. मारुतिनन्दन तिवारी, जैन प्रतिमाविज्ञान, पृ० ४१ । ८४. गुजरात व राजस्थान के बाहर १६ महाविद्याओं के सामूहिक शिल्पांकन __ का एकमात्र सम्भावित उदाहरण खजुराहो के आदिनाथ मन्दिर ( ११वीं
शती ई० ) के मण्डोवर पर देखा जा सकता है ( चित्र ३५, ३६ )। मारुतिनन्दन तिवारी, 'दि आइकनोग्राफी ऑव दि सिक्सटीन जैन महाविद्याज़ ऐज डिपिक्टेड इन दि शान्तिनाथ टेम्पल, कुम्भारिया', सम्बोधि, खण्ड-२, अं० ३, पृ० १५-२२ ।
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