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________________ यक्ष-यक्षी एवं बिद्यादेवी : १५९ विद्युन्मुखी एवं वेयाल आदि विद्याओं का उल्लेख किया गया है। आवश्यकचूणि एवं आवश्यकनियुक्ति में गौरी, गान्धारी, रोहिणी और प्रज्ञप्ति का प्रमुख विद्याओं के रूप में उल्लेख है ।७४ पद्मचरित ( रविष्णकृत-६७६ ई० ) में भी नमि-विनमि की कथा एवं प्रज्ञप्ति विद्या का उल्लेख है। चतुर्विंशतिका ( बप्पभट्टसूरिकृत-७४३-८३८ ई० ) में २४ जिनों के साथ २४ यक्षियों के स्थान पर महाविद्याओं ७५ वाग्देवी एवं कुछ यक्षियों तथा अन्य देवों के उल्लेख हैं। गुणभद्रकृत उत्तरपुराण में प्रज्ञप्ति, कामरूपिणी, अग्निस्तम्भिनी, उदकस्तम्भिनी, विश्वप्रवेशिनी, अप्रतिघातगामिनी, आकाशगामिनो, उत्पादिनी, वशीकरणी, दशमी, आवेशनी, माननीयप्रस्थापिनी, प्रमोहिनी, प्रहरणी, संक्रामणी, आवर्तनी, संग्रहणी, अंजनी, विपाटिनी, प्रावर्तनी, प्रमोदिनी, प्रहापणी, प्रभावती, प्रलापिनी, निक्षेपणी, शर्बरी, चाण्डाली, मातंगी, गौरी, षडंगिका, श्रीमत्कन्या, शतसंकुला, कुभाण्डी, विरलबेगिका, रोहिणी, मनोवेगा, चण्डवेगा, चपलवेगा, लघुकरो, पर्णलघु, बेगावती, शीतदा, उष्णदा, बेताली, महाज्वाला, सर्वविद्याछेदिनी, युद्धवीर्या, बन्धुमोचनी, प्रहारावरणी, भ्रामरी तथा अभोगिनी विद्याओं के नामोल्लेख हैं।७६ उत्तरपुराण में ही एक अन्य स्थल पर लक्ष्मण द्वारा सात दिनों तक निराहार व्रत रखकर जगत्पाद पर्वत पर प्रज्ञप्ति नामक विद्या की सिद्धि का उल्लेख आया है। एक अन्य स्थल पर उल्लेख है कि हनुमान ने अपनी महाज्वाला नामक विद्या से रावण की लंका नगरी के रक्षकों व सेना को भस्म कर दिया। इसी प्रकार एक अन्य स्थल पर सुग्रीव व हनुमान द्वारा गरुडवाहिनी, सिंहवाहिनी, बन्धमोचिनी और हननवरणी नामक चार विद्याएँ राम व लक्ष्मण को दिये जाने का भी उल्लेख महत्त्वपूर्ण है । ७९ सिंहवाहिनी व गरुडवाहिनी विद्याओं द्वारा निर्मित आकाशगामी सिंह तथा गरुड पर आरूढ़ होकर राम और लक्ष्मण रावण से युद्ध करने के लिये उद्यत हुए । महापुराण (पुष्पदन्तकृत-१०वीं शती ई०) एवं उत्तरपुराण (गुणभद्रकृत) में उल्लखित उपरोक्त विद्याओं के अतिरिक्त जलस्तम्भिनी, बन्धिनी, अन्धीकरिणी, प्रहारावरणी, आवेशिनी, अप्रतिगामिनी, विविधप्रलयिनी, पाशविमोचिनी, ग्रहनिरोधिनी, बलनिक्षेपिणी, चण्डप्रभाविनी, मोहिनी, जम्भनी, पातनी, प्रभावती, प्रविरलगति, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002115
Book TitleJain Mahapurana Kalaparak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumud Giri
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1995
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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