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________________ यक्ष-यक्षी एवं विद्यादेवी : १५५. अम्बिका को नेमिनाथ के अतिरिक्त महावीर और पार्श्वनाथ की यक्षी के रूप में भी आमूर्तित किया गया है। गुफा सं० ३० और ३१ में एक-एक, गुफा सं० ३२ में १२ एव गुफा सं० ३३ और ३४ में क्रमशः दो-दो मूर्तियाँ उकेरी हैं। सभी उदाहरणों में मनोहारी रूपराशि एवं अलंकरणों वाली अम्बिका को द्विभुजा और ललितासीन दिखाया गया है। इकहरे बदनवाली अम्बिका की शरीर रचना पूरी तरह अनुपातिक, मदु एवं संयत है। धम्मिल्ल के रूप में बनी उनकी केशरचना भी चित्ताकर्षक है। आम्रवृक्ष के नीचे आसीन अम्बिका के दाहिने हाथ में आम्रलुम्बि है जबकि बायें हाथ से उन्हें गोद में आसीन पुत्र को पकड़े दिखाया गया है। देवी के समीप ही दूसरा पुत्र भी देखा जा सकता है। गुफा सं० ३१ और ३२ की कुछ मूर्तियों में देवी के समीप यज्ञोपवीत एवं श्मश्रु से युक्त साधु की आकृति भी उकेरी है जिसे अम्बिका के पूर्व जन्म की कथा से सन्दर्भित ब्राह्मण पति ( सोम ) का अंकन माना जा सकता है। कुछ उदाहरणों में इस आकृति को छत्र लिये हुए दिखाया गया है। इस प्रकार एलोरा में अन्यत्र की भाँति अम्बिका के निरूपण में दिगम्बर शिल्पशास्त्रीय परम्परा का पालन किया गया है जिसमें लक्षण की दृष्टि से एकरूपता दिखायी देती है। पदमावतो: पद्मावती पार्श्वनाथ की यक्षी है। दिगम्बर परम्परा में पद्मावती को चार, छह या चौबीस हाथों वाला बताया गया है। देवी या तो पद्मवाहना या कुक्कुट ( या कुक्कुट-सर्प) पर आरूढ़ निरूपित हैं। चतुर्भजा यक्षी के तीन हाथों में अंकुश, अक्षसूत्र एवं पद्म तथा षड्भुजा यक्षी के हाथों में खड्ग, शूल, गदा और मुसल का उल्लेख मिलता है। २४ हाथों वाली यक्षी के करों में शंख, खड्ग, चक्र, अर्धचन्द्र (बालेन्दु ), पद्म, उत्पल, धनुष (शरासन ), शक्ति, पाश, अंकुश, घण्टा, बाण, मुसल, खेटक, त्रिशूल, परशु, कुन्त, भिण्ड, माला, फल, गदा, पत्र, पल्लव एवं वरदमुद्रा के प्रदर्शन का निर्देश है ।५५ पार्श्वनाथ की मूर्तियों में पद्मावती को अधिकांशतः वाम या दक्षिण पार्श्व में एक लम्बे छत्र से युक्त दिखाया गया है जिसका छत्र भाग पार्श्वनाथ के सिर पर छाया करता हआ रहता है (चित्र ११-१५, १७) । देवगढ़, मथुरा एवं खजुराहो की दिगम्बर मूर्तियों में पार्श्ववर्ती छत्रधारिणी पद्मावती के अतिरिक्त सिंहासन छोरों पर भी धरणेन्द्र और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002115
Book TitleJain Mahapurana Kalaparak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumud Giri
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1995
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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