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________________ १५४ : जैन महापुराण : कलापरक अध्ययन देवगढ़, खजुराहो एवं मथुरा आदि स्थलों की मूर्तियों में देखे जा सकते हैं। एलोरा में चक्रेश्वरी की कुल चार मूर्तियाँ हैं जो स्वतन्त्र मूर्तियों के रूप में उत्कीर्ण हैं। ये मूर्तियाँ गुफा सं० ३० और ३२ में हैं। गुफा सं० ३० की अष्टभुजा यक्षी ध्यानमुद्रा में विराजमान है और उसके अवशिष्ट करों में से तीन में चक्र ( छल्ले के रूप में ), वज्र और शंख हैं जबकि दो हाथों से वरद और अभयमुद्रा व्यक्त है। करण्डमुकुट से शोभित चक्रेश्वरी के शीर्ष भाग में ऋषभनाथ की लघु मूर्ति भी उत्कीर्ण है। गुफा सं० ३० की दूसरी मति प्रवेश-द्वार के समीप उत्कीर्ण है। इस उदाहरण में बारह हाथों वाली चक्रेश्वरो ध्यानमुद्रा में गरुड (मानवदेहधारी) पर आसीन है । यक्षी के पाँच दक्षिण कर खंडित हैं जबकि एक में खड्ग है। वाम करों में दो में चक्र तथा तीन में पद्म, शंख और गदा स्पष्ट हैं। शीर्ष भाग में पूर्ववत् तीर्थंकर आकृति उकेरी है। एलोरा की गुफा सं० ३२ के एक उदाहरण में चतुर्भज चक्रेश्वरी ध्यानमद्रा में बैठी हैं और उनके अवशिष्ट करों में चक्र और वज्र स्पष्ट हैं। दूसरी मूर्ति प्रथम तल के मण्डप में उकेरी है। इस उदाहरण में केवल एक हाथ में वज्र ही स्पष्ट है। अम्बिका : अम्बिका २२वें तीर्थंकर नेमिनाथ की यक्षी है जिसका विकास मातृपूजन की प्राचीन परम्परा और जैन परम्परा की बहुपुत्रिका यक्षी से हुआ। दिगम्बर परम्परा में सिंहवाहना अम्बिका ( या कुष्माण्डिनी) को दो और चार हाथों वाला निरूपित किया गया है। किन्तु लक्षण केवल दो हाथों के ही वणित हैं। उल्लेखनीय है कि खजुराहो, देवगढ़, मथुरा एवं देलवाड़ा की कुछ चतुर्भुजी मूर्तियों को छोड़कर अम्बिका को सर्वदा द्विभुजा ही निरूपित किया गया है। दिगम्बर ग्रन्थों के वर्णन के अनुरूप अम्बिका के एक हाथ में आम्रलुम्बि और दूसरे में पुत्र (प्रियंकरगोद में आसीन ) दिखाया गया है (चित्र सं० २३, २४, २५) । अम्बिका का दूसरा पुत्र ( शुभंकर ) भी देवी के समीप ही आमूर्तित हुआ है ।५४ एलोरा में यक्षियों में सर्वाधिक मूर्तियाँ अम्बिका की ही मिली हैं जिनके कुल १८ उदाहरण प्राप्त हुए हैं (चित्र सं० २८) । इनमें अम्बिका की स्वतन्त्र मूर्तियों के साथ हो जिन-संयुक्त मूर्तियाँ भी हैं। इनमें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002115
Book TitleJain Mahapurana Kalaparak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumud Giri
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1995
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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