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________________ यक्ष-यक्षी एवं विद्यादेवी : १५३ 'बिहार-उड़ोसा-बंगाल : ___ इस क्षेत्र में यक्ष-यक्षी युगलों के चित्रण की परम्परा अधिक लोकप्रिय नहीं थी। केवल दो उदाहरणों में यक्ष-यक्षी निरूपित हैं ।५१ उड़ीसा में नवमुनि एवं बारभुजी गुफाओं [११वीं-१२वीं शती ई० ] की क्रमशः सात और २४ जिन मूर्तियों में, जिनों के नीचे उनकी यक्षियाँ निरूपित हैं। इस क्षेत्र से चक्रेश्वरी व अंबिका की कुछ स्वतन्त्र मूर्तियाँ भी मिली हैं।५२ ऐसा प्रतीत होता है कि यक्ष-यक्षी की सूची और उनके लक्षण पूर्वपरम्परा में ज्ञात होने के बाद भी किसी विशेष कारण से महापुराण में अनुल्लखित रहे । ६३ शलाकापुरुषों से सम्बन्धित दिगम्बर पुराणों में जहाँ २४ यक्ष-यक्षी का कोई उल्लेख नहीं मिलता है वहीं श्वेताम्बर परम्परा के ६३ शलाकापुरुषों से सम्बन्धित चरित ग्रन्थों में यक्ष-यक्षी युगलों के प्रतिमानिरूपण से सम्बन्धित विवरण मिलते हैं, उदाहरण के लिये हेमचन्द्रकृत त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र और अमरचन्द्रसूरिकृत पद्मानन्दमहाकाव्य देखे जा सकते हैं। ____ यद्यपि आदिपुराण या उत्तरपुराण में यक्ष-यक्षी का उल्लेख नहीं है किन्तु एलोरा की जैन गुफाओं में जैन देवकुल की तीन प्रमुख यक्षियोंचक्रेश्वरी, अम्बिका और पद्मावती एवं कुबेर ( या सर्वाह ) यक्ष की मूर्तियाँ मिली हैं जो तत्कालीन शिल्प परम्परा के अनुरूप हैं । एलोरा की जैन यक्ष-यक्षी मूर्तियों का स्वतन्त्र उल्लेख यहाँ अपेक्षित है। चक्रेश्वरी: चक्रेश्वरी ( या अप्रतिचक्रा ) प्रथम तीर्थंकर व ऋषभनाथ की यक्षी हैं जिनके निरूपण में स्पष्टतः ब्राह्मण धर्म की वैष्णवी का प्रभाव देखा जा सकता है। दिगम्बर परम्परा में चक्रेश्वरी को चार और बारह भुजाओं वाला बताया गया है। गरुडवाहना चतुर्भुजा यक्षी के दो हाथों में चक्र और शेष दो में मातृलिंग व वरदमुद्रा का उल्लेख हुआ है। १२ हाथों वाली देवी के आठ हाथों में चक्र, दो में वज्र और दो में मातुलिंग एवं वरदमुद्रा का उल्लेख है ।५3 देवगढ़ की चतुर्भुजा चक्रेश्वरी मूर्ति के चारों हाथों में चक्र और ऐसे ही मथुरा से प्राप्त १०वीं शती ई० की दस हाथों वाली मूर्ति ( मथुरा संग्रहालय डी०-६ ) में यक्षी के सभी हाथों में चक्र देखा जा सकता है। शास्त्रीय विवरण के अनुसार गरुडवाहना देवी के हाथों में चक्र के अतिरिक्त गदा, पद्म और शंख Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002115
Book TitleJain Mahapurana Kalaparak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumud Giri
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1995
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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