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________________ १५६ : जैन महापुराण : कलापरक अध्ययन पद्मावती की आकृतियाँ उकेरी हैं जिनमें सर्पफणों के छत्र वाली पद्मावती के हाथो में सर्प के अतिरिक्त पद्म, अंकुश, पाश जैसे आयुध प्रदर्शित हैं और वाहन के रूप में कुक्कुट सर्प का अंकन हुआ है जो दिगम्बर ग्रन्थों के विवरणों के अनुरूप है। ज्ञातव्य है कि उत्तर और दक्षिण भारत में पद्मावती सर्वाधिक लोकप्रिय यक्षियों में एक रही हैं। एलोरा में तीर्थंकरों में पार्श्वनाथ की सर्वाधिक मूर्तियाँ ( ३० ) मिली हैं । अतः स्वाभाविक रूप से यहाँ पद्मावती की सर्वाधिक मूर्तियाँ देखी जा सकती हैं। पार्श्वनाथ की कायोत्सर्ग मूर्तियों में परम्परानुरूप छत्रधारिणी पद्मावती की मनोज्ञ आकृतियाँ उकेरी हैं (चित्र ११-१६) । साथ ही पद्मावती की एक स्वतंत्र मूर्ति एलोरा की गुफा सं० ३२ में उत्कीर्ण है। यह मूर्ति इन्द्र सभा के पूर्वी मण्डप में उकेरी है । आठ हाथों वाली यक्षी समभंग में द्विपदमासन पर खड़ी हैं जिसके नीचे कुक्कुटसर्प स्पष्टतः देखा जा सकता है । देवी के अवशिष्ट करों में पद्म, मुसल, खड्ग, खेटक और धनुष स्पष्ट हैं । यक्षी के शीर्ष भाग में पार्श्वनाथ की छोटी आकृति भी उकेरी है। कुबेर या सर्वानुभूति यक्ष : २२वें तीर्थंकर नेमिनाथ के यक्ष के रूप में प्रतिमाशास्त्रीय ग्रन्थों में त्रिमुख एवं षड्भुज गोमेध यक्ष का उल्लेख हुआ है जिसका वाहन नर या पुष्प बताया गया है। किन्तु मूर्त अंकनों में नेमिनाथ के साथ सर्वदा धन के थैले से युक्त कुबेर या सर्वानुभूति यक्ष को आमूर्तित किया गया है। दिगम्बर परम्परा में गोमेध के हाथों में मुद्गर ( या धन का थैला या नकुल ), परशु, दण्ड, फल, वज्र एवं वरदमुद्रा के प्रदर्शन का निर्देश दिया गया है ।५७ किन्तु देवगढ़, खजुराहो, कुंभारिया एवं देलवाड़ा के स्वतन्त्र एवं जिन संयुक्त उदाहरणों में गजारूढ़ यक्ष को सामान्यतः द्विभुज और धन के थैले एवं फल से युक्त निरूपित किया गया है। श्वेताम्बर स्थलों की चतुर्भुज मूर्तियों में दो अतिरिक्त हाथों में पाश और अंकुश भी प्रदर्शित हैं। ____ एलोरा में कुबेर यक्ष की १० से अधिक स्वतन्त्र एवं जिन-संयुक्त मूर्तियाँ मिली हैं। जिन-संयुक्त मूर्तियों में नेमिनाथ के अतिरिक्त पार्श्वनाथ एवं महावीर की मूर्तियों में भी कुबेर यक्ष आकारित हुए हैं। एलोरा की गुफा सं० ३१ में एक, गुफा सं० ३२ में सात और गुफा सं० ३३ एवं ३४ में दो मूर्तियाँ उत्कीर्ण हैं। सभी उदाहरणों में गजारूढ़ यक्ष को धटोदर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002115
Book TitleJain Mahapurana Kalaparak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumud Giri
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1995
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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