________________
पंचम अध्याय यक्ष-यक्षी एवं विद्यादेवी
प्राचीन भारतीय ब्राह्मण, बौद्ध एवं जैन साहित्य में यक्षों के प्रभूत उल्लेख मिलते हैं। ऋग्वेद, अथर्ववेद तथा उपनिषद ग्रन्थों में अनेक स्थलों पर यक्ष शब्द प्रयुक्त हुआ है। रामायण ( ३.११.९४ ) में देवों द्वारा यक्षत्व एवं अमरत्व का वरदान देने का उल्लेख मिलता है। महाभारत ( ६.४१.४ ) में उल्लेख आता है कि सात्विक वर्ग के लोग देवों की, राजसिक वर्ग के लोग यक्ष व राक्षस तथा तामसिक वर्ग के लोग भतप्रेत की उपासना करते हैं।' बौद्ध साहित्य में यक्षों का उल्लेख नैतिक शिक्षक के रूप में आया है । यक्षों को उपकार व अपकार दोनों का कर्ता माना गया है। कुमारस्वामी के अनुसार यक्षों व देवों के बीच कोई विशेष भेद नहीं था और 'यक्ष' शब्द एक प्रकार से देव का ही पर्यायवाची था। पवाया ( म०प्र० ) की मणिभद्र यक्ष मूर्ति (पहली शती ई० पू०) भगवान् के रूप में पूजित थी। जैन ग्रन्थों में भी यक्षों का अधिकांशतः देव के रूप में उल्लेख आता है ।" उत्तराध्ययनसूत्र के अनुसार संचित सत्कर्मों के प्रभाव को भोगने के बाद यक्ष पुनः मनुष्य रूप में जन्म लेते हैं। ___ जैन ग्रन्थों में यक्ष एवं यक्षियों का उल्लेख जिनों के शासन व उपासक देवों के रूप में हुआ है। प्रत्येक जिन के यक्ष-यक्षी युगल उनके चतुर्विध संघ के शासक एवं रक्षक देव हैं। जैन ग्रन्थों के अनुसार समवसरण में जिनों के धर्मोपदेश के बाद, इन्द्र ने प्रत्येक जिन के साथ सेवक देवों के रूप में एक यक्ष और एक यक्षी को नियुक्त किया था। सदैव जिनों के समीप रहने के कारण जैन देवकुल में यक्ष एवं यक्षियो को जिनों के बाद सर्वाधिक प्रतिष्ठा मिली ।१०
२४ यक्षों एवं २४ यक्षियों की सूची में अधिकांश के नाम एवं उनकी लाक्षणिक विशेषताएँ ब्राह्मण और कुछ उदाहरणों में बौद्ध देवकुल के देवों से प्रभावित हैं। जैन देवकूल पर ब्राह्मण और बौद्ध धर्मों के देवों का प्रभाव दो प्रकार का है । प्रथम, जैनों ने इन धर्मों के देवों के केवल नाम ग्रहण किये हैं और स्वयं उनकी स्वतंत्र लाक्षणिक विशेषताएँ निर्धारित की। गरुड, वरुण, कुमार यक्षों और गौरी, काली, महाकाली, अंबिका
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org