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________________ १४६ : जैन महापुराण : कलापरक अध्ययन ९६. उत्तरपुराण ७०.३८४-४०८; आगे चलकर जैन परम्परा में यही विन्ध्यवासिनी देवी के रूप में मान्य हुईं । ९७. उत्तरपुराण ७०.४१२-४२४ । ९८. उत्तरपुराण ७०.४४० - ४७२; हरिवंशपुराण में उल्लेख है कि कृष्ण ने विषम सर्पों से युक्त सरोवर में जाकर कालिय नामक नाग का मर्दन किया । ३६.६-७॥ ९९. उत्तरपुराण ७०.४९१-४९४ । १०० उत्तरपुराण ७१.६-२८; त्रिषष्टिशला कापुरुषचरित्र ८.५.३२१-४००; हरिवंशपुराण ४०. २५-४३ ॥ १०१. उत्तरपुराण ७१.५२-११५; हरिवंशपुराण ५२.५९-८३; त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र ८.७.१३४-४५७ । १०२. उत्तरपुराण ७१.११७-१२२ । १०३. उत्तरपुराण ७१.१२३ - १२५; हरिवंशपुराण ३५.२० । १०४. उत्तरपुराण ७१.१२३-१२८; हरिवंशपुराण ४४.११-४८; इस ग्रन्थ के अनुसार गौरी को छोड़कर कृष्ण ने सभी का हरण किया था । १०५. उत्तरपुराण ७१.१७८-८३, १२२ । १०६. मारुतिनन्दन तिवारी, 'वैष्णव थीम्स इन देलवाड़ा जैन टैम्पल्स', वाजपेय० डी० बाजपेयी फेलिसिटेशन, वाल्यूम, दिल्ली; १९८७, पृ० १९५-२०० १०७. मारुतिनन्दन तिवारी, जैन प्रतिमाविज्ञान, पृ० ११९-१२० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002115
Book TitleJain Mahapurana Kalaparak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumud Giri
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1995
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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