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१४८ : जैन महापुराण : कलापरक अध्ययन एवं पद्मावती यक्षियों के सन्दर्भ में इसी प्रकार का प्रभाव दृष्टिगत होता है। द्वितीय, जैनों ने देवताओं के एक वर्ग की लाक्षणिक विशेषताएँ इतर धर्मों के देवों से ग्रहण की। कभी-कभी इनके नाम भी हिन्दू और बौद्ध देवों के नामों से प्रभावित हैं। इस वर्ग में मुख्य रूप से ब्रह्मा, ईश्वर, गोमुख, भृकुटि, षण्मुख, यक्षेन्द्र, पाताल, धरणेन्द्र एवं कुबेर यक्ष और चक्रेश्वरी, विजया, निर्वाणी, तारा एवं वज्रश्रृंखला यक्षियाँ आती हैं।११ हरिवंशपुराण में उल्लेख है कि जिन शासन के भक्त देवों ( शासन देवताओं) के प्रभाव से हित (शुभ) कार्यों की विघ्नकारी शक्तियाँ (ग्रह, नाग, भूत, पिशाच व राक्षस ) शान्त हो जाती हैं ।१२ जैन ग्रन्थों में यक्ष जिनों के चामरधर सेवकों के रूप में निरूपित हैं ।13 भगवतीसूत्र में वैश्रमण के प्रति पुत्र के समान आज्ञाकारो १३ यक्षों की सूची दी है ।१४ ये पुन्नभद्द, मणिभद्द, शालिभद्द, सुमणभद्द, चक्क, रक्ख, पुण्णरक्ख, सव्वन, सव्वजस, समिध्ध, अमोत, असंग और सव्वकाम हैं । तत्वार्थसूत्र'५ में भी जिन १३ यक्षों के नाम हैं वे पूर्णभद्र, मणिभद्र, सुमनोभद्र, श्वेतभद्र, हरिभद्र, व्यतिपातिकभद्र, सुभद्र, सर्वतोभद्र, मनुष्ययक्ष, वनाधिपति, वनाहार, रूपयक्ष एवं यक्षोतम हैं। ___जैन आगमों में विभिन्न चैत्यों का उल्लेख आता है जहाँ अपने भ्रमण के दौरान महावीर विश्राम करते थे। इनमें दूतिपलाश, कोष्ठक, चन्द्रावतरन, पूर्णभद्रे, जम्बूक, बहुपुत्रिका, गुणशील, बहुशालक, कुण्डियायन, नन्दन, पुष्पवती, अंगमंदिर, प्राप्तकाल, शंखवन, छत्रपलाश आदि प्रमुख हैं। इनमें पूर्णभद्र, बहुपुत्रिका एवं गुणशील जैसे चैत्य निश्चित ही यक्ष चैत्य थे क्योंकि आगम ग्रन्थों में अन्यत्र इनका यक्षों के रूप में उल्लेख
हुआ है ।१७
__जैन ग्रन्थों में मणिभद्र और पूर्णभद्र यक्षों एवं बहुपुत्रिका यक्षी को विशेष महत्त्व दिया गया है। मणिभद्र और पूर्णभद्र को व्यन्तर देवों के यक्ष वर्ग का इन्द्र बताया गया है। ऐसा उल्लेख है कि इन यक्षों ने चम्पा में महावीर के प्रति श्रद्धा व्यक्त की थी। अंतगड्दसाओ और औपपातिकसूत्र में चम्पानगर के पुण्णभद्द ( पूर्णभद्र ) चैत्य का, पिण्डनियक्ति२१ में सम्मिलनगर के बाहर मणिभद्र यक्ष के आयतन तथा पउमचरिय२२ में पूर्णभद्र और मणिभद्र यक्षों का शान्तिनाथ के सेवक के रूप में उल्लेख है। इसी प्रकार भगवतीसूत्र में विशला ( उज्जैन या वैशाली) के समीप स्थित बहुपुत्रिका के मंदिर का उल्लेख है ।२३ इस ग्रन्थ में
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