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________________ १४० : जन महापुराण : कलापरक अध्ययन को भेजा तो यादवों का कुलदेवता एक बूढ़ी स्त्री के रूप में मार्ग में अग्नि जलाकर बैठ गया और कालयवन द्वारा पूछे जाने पर बता दिया कि उसके भय से समस्त यादवों ने इस अग्नि में जलकर अपने प्राण दे दिये हैं। यह सुन कर कालयवन आश्वस्त हो वापस चला गया। 100 तत्पश्चात् कृष्ण, वसुदेव, पद्म एवं यादवों सहित इन्द्र की आज्ञा से कुबेर द्वारा समुद्र में निर्मित द्वारावती नगरी में सुखपूर्वक रहने लगे। किसी दिन कुछ वैश्य पुत्रों द्वारा जब जरासन्ध को, कृष्ण व द्वारावती नगरी के बारे में पुनः सूचना मिली तो यादवों का नाश करने के उद्देश्य से वह चल पड़ा। कुरुक्षेत्र में दोनों पक्ष की सेनाओं में भीषण युद्ध हुआ। जरासन्ध ने कृष्ण को मारने के उद्देश्य से जिस चक्र को चलाया वह कृण्ण को प्रदक्षिणा कर उनकी दाहिनी भुजा पर ठहर गया और उसी चक्र से कृष्ण ने जरासन्ध का वध कर दिया ।१०१ इसके पश्चात अनेक राजाओं को अपने अधीन कर और आधे भारत का स्वामी हो कृष्ण ने बलदेव पद्म व सेना के साथ द्वारावती नगरी में प्रवेश किया जहाँ देव व विद्याधर राजाओं ने चक्रवर्ती रूप में कृष्ण का राज्याभिषेक किया।१०२ उत्तरपुराण में कृष्ण को नीलवर्ण का पीताम्बर, मयूरपिच्छ, नीलकमल की माला, गले में उत्तम कंठी, सिर पर ऊँचा मुकुट व कलाइयों में सुवर्ण के देदीप्यमान कंटक से सज्जित बताया गया है । चक्र, शक्ति, गदा, शंख, धनुष, दण्ड तथा नन्दक खड्ग-इनके सात प्रमुख रत्न माने गये हैं। इसी प्रकार रत्नमाला, गदा, हल और मुसल बलभद्र पद्म के चार प्रमख रत्न बताये गये हैं। 103 कष्ण की रुक्मिणी, सत्यभामा, जाम्बवती, सुसीमा, लक्ष्मण, गान्धारी, गौरी व प्रिया नामधारी आठ प्रमुख पट्टरानियाँ एवं कुल सोलह हजार रानियाँ थीं। बलदेव पद्म के आठ हजार रानियाँ थीं। कृष्ण ने नागशय्या पर आरूढ़ हो, गरुडवाहिनी विद्या सिद्ध की थी। इनकी पताका गरुड चिह्न से युक्त थी।1०४ एक दिन बलदेव द्वारा तीर्थंकर नेमिनाथ से कृष्ण के राज्य आदि के बारे में पूछने पर ज्ञात हुआ कि बारह वर्ष बाद द्वारावती नगरी के नष्ट होने पर कौशाम्बी वन में जरत्कुमार द्वारा कृष्ण की मृत्यु होगी । उसी के अनुरूप कृष्ण की मृत्यु हुई। कृष्ण के वियोग में बलभद्र पद्म ने संयम धारण कर लिया।१०५ यद्यपि एलोरा में बलराम और कृष्ण को आमूर्तित नहीं किया गया Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002115
Book TitleJain Mahapurana Kalaparak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumud Giri
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1995
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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