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शलाका पुरुष : १४१.
है किन्तु विभिन्न श्वेताम्बर व दिगम्बर स्थलों पर स्वतंत्र और नेमिनाथ मूर्तियों के परिकर तथा नेमिनाथ के जीवन दृश्यों के अन्तर्गत इनका अंकन हुआ है । १०६ सर्वप्रथम मथुरा की कुषाणकालीन नेमिनाथ मूर्तियों में हलधर, बलराम और चक्रधारी कृष्ण का निरूपण हुआ। मध्यकाल में देवगढ़ (चित्र ८) एवं मथुरा की दो नेमिनाथ मूर्तियों ( १०वीं-११वीं शती ई०), बटेश्वर की नेमिनाथ मूर्ति, मथुरा संग्रहालय की अम्बिका मूर्ति (क्रमांक डी० ७), आगरा की मुनिसुव्रत और मथुरा के कंकाली टीला की ऋषभनाथ मति ( राज्य संग्रहालय, लखनऊ, क्रमांक जे० ७८) में बलराम और कृष्ण को दोनों पावों में दिखाया गया है। इनमें द्विभज या चतुर्भुज बलराम और कृष्ण की आकृतियाँ उकेरी हैं । पाँच या सात सर्पफणों के छत्र वाले बलराम के हाथों में हल, मुसल और चषक दिखाया गया है जबकि वनमाला और किरीट-मुकुट से शोभित कृष्ण के करों में गदा, चक्र और शंख प्रदर्शित हैं।१०७ इन दिगम्बर मूर्तियों में बलराम-कृष्ण के लक्षण पूरी तरह उत्तरपुराण के विवरण पर आधारित हैं। ___ खजुराहो के पार्श्वनाथ जैन मंदिर यमलार्जुन कृष्ण मूर्ति के अतिरिक्त हलधर बलराम की रेवती सहित आलिंगन मूर्ति भी उत्कीर्ण है। देलवाड़ा के विमलवसही व लूणवसही (ल० ११५०-१२५० ई० ) में कृष्ण के कालियनाग मर्दन (चित्र ३१), गोप-गोपिकाओं के साथ होली खेलने, कृष्ण जन्म एवं विभिन्न बाल-लीलाओं एवं असुरों के संहार से संबंधित दृश्यों का विस्तारपूर्वक अंकन हुआ है जो जैन ग्रन्थों की बलराम-कृष्ण कथा की पृष्ठभूमि में विशेष महत्त्वपूर्ण है। लूणवसही में कृष्ण-जन्म का अत्यधिक विस्तारपूर्वक अंकन विशेषतः उल्लेखनीय है ।
पाद-टिप्पणी १. आदिपुराण २६.६२ क्रमशः; आवश्यकनियुक्ति गाथा ३९१; त्रिषष्टि- .
शलाकापुरुषचरित्र, पृ० २१२, २५६, २६२; जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति ३.४२,
पृ० १.०-१८१। २. आदिपुराण १५.१००-१०१ । ३. महापुराण (पुष्पदन्तकृत), ५९.१७ । ४. त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र १.२.८८५-८८७ । ५. यू० पी० शाह, जैन रूपमण्डन, पृ० ७३; त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र
७.१३.१९.१३, १.४.५६८-५८७; आदिपुराण ३७.७४, ८३-८४ ।
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