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शलाका पुरुष : १२३०
परिपूर्ण तथा सुवर्ण के समान कान्ति वाले थे | २० इन्होंने भी चिरकाल तक दिग्विजय किया। उनके गुणवान साठ हजार पुत्र थे । एक दिन इन पुत्रों ने अपने योग्य साहसपूर्ण कार्य माँगा । बहुत विचार करने के बाद सगर चक्रवर्ती ने अपने पुत्रों को कैलास पर्वत पर भरत चक्रवर्ती द्वारा बनवाये गये अरहन्तदेव के चौबीस मंदिरों के चारों ओर गंगा नदी को परिखा रूप में बना देने का कार्य सौंपा। इस कार्य को पूर्ण करने के लिये जब इनके पुत्र कैलास पर्वत पर गये हुए थे, तभी मणिकेतु नामक देव ने जो सगर को सांसारिक भोगों से विमुख करना चाहता था, एक दुष्ट नाग का रूप धर कर इन्हें भस्म कर दिया । जब सगर को अपने पुत्रों की मृत्यु का समाचार मिला तो अत्यन्त शोकाकुल हो उन्हें इस नश्वर संसार से विरक्ति हो गयी और भगीरथ को राज्य सौंप कर उन्होंने दीक्षा धारण कर ली और विधि तपश्चरण करते हुए मोक्ष प्राप्त किया । २१ भगीरथ और गंगा का प्रसंग स्पष्टतः ब्राह्मण परम्परा के गंगावतरण प्रसंग से सम्बन्धित है । सगर की एलोरा या अन्य किसी . स्थल से कोई मूर्ति नहीं मिली है । (३) मघवा चक्रवर्ती :
तीसरे चक्रवर्ती मघवा का जन्म धर्मनाथ तीर्थकर के तीर्थ में अयोध्यापुरी के इक्ष्वाकुवंशी राजा सुमित्र के यहाँ हुआ था । माता का नाम भद्रारांनी था। मनुष्य, विद्याघर व इन्द्र इनके चरणों में नतमस्तक होते थे । एक दिन अकस्मात् अभयघोष नामक केवली मनोहर नामक उद्यान में पधारे। उनसे धर्म के स्वरूप व तत्त्वों का ज्ञान होने पर मघवा को इस संसार से विरक्ति हो गयी । फलस्वरूप प्रियमित्र नामक पुत्र को राज्य सौंप कर इन्होंने दीक्षा धारण की ओर केवलज्ञान तथा मोक्ष प्राप्त किया । २२
( ४ ) सनत्कुमार चक्रवर्ती :
चौथे चक्रवर्ती सनत्कुमार का जन्म अयोध्या अधिपति सूर्यवंशी राजा अनन्तवीर्य की रानी सहदेवी के गर्भ से हुआ था । इन्होंने भी समस्त पृथ्वी को अपने अधीन कर रखा था । सनत्कुमार सुवर्ण के समान कान्तिवाले और अत्यन्त रूपवान थे । इनके रूप के सम्बन्ध में कथा है कि- एक बार सौधर्म इन्द्र की सभा में इनके रूप की चर्चा हुई । फलस्वरूप कौतुहलवश इनके रूप को देखने के लिये देव पृथ्वी पर आये और हर्षित हुए। साथ ही उन देवों ने सनत्कुमार को इस ससार के.
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