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________________ १२४ : जैन महापुराण : कलापरक अध्ययन रोग, बुढ़ापा, दुःख तथा मरण का स्मरण दिला उनके रूप की प्रशंसा की। उसी समय इन्हें इस नश्वर संसार के प्रति विरक्ति उत्पन्न हो गयी और वे दीक्षित हो गये। तत्पश्चात् कठोर तपश्चरण करते हुए उन्हें केवलज्ञान और अन्त में मोक्ष प्राप्त हुआ।२3 पाँचवें चक्रवर्ती शांतिनाथ, छठे चक्रवर्ती कुन्थुनाथ व सातवें चक्रवर्ती अरनाथ एक ही भव में तीर्थंकर व चक्रवर्ती दोनों हुए जिनका उल्लेख पिछले अध्याय में तीर्थंकर के अन्तर्गत किया जा चुका है। ( ८ ) सुभौम चक्रवर्ती : ____ आठवें चक्रवर्ती सुभौम का जन्म अरनाथ तीर्थंकर के तीर्थ में अयोध्या नगरी के इक्ष्वाकुवंशी राजा सहस्रबाहु के यहाँ हुआ था। इनकी माता का नाम चित्रमती था । बालक पृथ्वी को छकर उत्पन्न हुआ था, इसीलिये चित्रमती के बड़े भाई शाण्डिल्य मुनि ने उसका नाम 'सुभौम' रखा ।२४ ये भी अन्य चक्रवर्तियों की तरह चक्र आदि शुभ लक्षणों, चौदह रत्नों व नौ निधियों से शोभित थे। सुभौम चक्रवर्ती ने अपने पिता का वध करने वाले उस परशुराम का वध किया था जिसने इक्कीस बार पृथ्वी से क्षत्रिय वंश को निर्मूल नष्ट किया था।२५ एक बार किसी निमित्तज्ञानी से अपना शत्रु उत्पन्न हुआ जानकर परशुराम ने शत्रु को जाँचने के उद्देश्य से भोजन कराने के लिये एक दानशाला खुलवायी और अपने सेवकों को आदेश दिया कि जो भी भोजनाभिलाषी यहाँ पर आये, उसे पात्र में रखे मृत राजाओं के एकत्रित दाँत दिखलाकर ही भोजन करवाया जाये। एक दिन सुभौम भी उनकी दानशाला में आया और दाँतों को शालि चावलों के भात में बदल दिया। क्रुद्ध हो परशुराम ने उनसे युद्ध की तैयारी की किन्तु उनकी सेना सुभौम के आगे न ठहर सकी। उसी समय चक्ररत्न भी पास ही प्रकट हो गया जिससे सुभौम ने परशुराम का वध कर दिया ।२६ यह कथा ब्राह्मण परम्परा के परशुराम प्रसंग का जैन रूपान्तरण जान पड़ती है। सुभौम चक्रवर्ती को अन्य चक्रवर्तियों के समान मोक्ष नहीं प्राप्त हुआ।२७ (९) पदम चक्रवर्ती : १२ चक्रवतियों में पद्म नौवें चक्रवर्ती हैं । इनका जन्म भरत क्षेत्र में काशी के वाराणसी नामक नगरी के इक्ष्वाकुवंशी राजा पद्नाभ के यहाँ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002115
Book TitleJain Mahapurana Kalaparak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumud Giri
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1995
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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