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________________ १२० : जैन महापुराण : कलापरक अध्ययन थे । इनकी माता का नाम यशस्वती था । माता यशस्वती ने गर्भधारण से पूर्व ग्रसी हुई पृथ्वी, सुमेरु पर्वत, चन्द्रमा सहित सूर्य, हंस सहित सरोवर तथा चंचल लहरों वाला समुद्र स्वप्न में देखा था। इन स्वप्नों का फल ऋषभदेव से जानकर वह अत्यन्त हर्षित हुईं और नौ मास व्यतीत होने पर चैत्र कृष्ण नवमी के दिन उत्तराषाढ़ नक्षत्र में पुण्यशालो पुत्र को जन्म दिया। वह पुत्र अपनी दोनों भुजाओं से पृथ्वी का आलिंगन कर उत्पन्न हआ था इसलिये निमित्तज्ञानियों ने उसके समस्त पृथ्वी का अधिपति अर्थात चक्रवर्ती होने की घोषणा की और समस्त भरतक्षेत्र के अधिपति होने वाले उस पुत्र को 'भरत' नाम दिया। जैन पुराणों के अनुसार इन्हीं के नाम से इस देश का नाम भारतभूमि या भारतवर्ष पड़ा। चक्रवर्ती सम्राट भरत इतने अधिक प्रभावशाली पुण्य-पुरुष थे कि जैन ग्रन्थों के साथ ही वैदिक मंत्रों, जैनेतर पुराणों, उपनिषदों आदि में भी उनका उल्लेख मिलता है। भागवत में भरत का विस्तृत विवरण प्राप्त है। इसमें उल्लेख है कि महायोगी भरत ऋषभदेव के सौ पुत्रों में ज्येष्ठ थे और उन्हीं से यह देश 'भारत' कहलाया।९ भरत चक्रवर्ती के ही नाम से इस देश का नाम 'भारतवर्ष' पड़ा, इस बात की पुष्टि'मार्कण्डेयपुराण' ( ५०.३९-४१ ), कूर्मपुराण (४१.३७-३८ ), अग्निपुराण (१०.१०-११), वायुमहापुराण, पूर्वार्ध ( ३३.५०-५२), ब्रह्माण्डपुराण, पूर्वार्ध ( अनुषंडपाद १४.५९-६१), वाराहपुराण (७४), लिंगपुराण ( ४७.१९-२३) तथा विष्णुपुराण द्वितीयांश ( १.२७-२८) से भी होती है।१० ___ समस्त विधि को जानने वाले ऋषभदेव ने स्वयं उनका अन्नप्राशन, चौल ( मण्डन) और उपनयन ( यज्ञोपवीत ) संस्कार किया था। भरत के चरणों में चक्र, छत्र, खड्ग, दण्ड आदि चौदह रत्नों के चिह्न बने थे। उनका हस्ततल शंख, चक्र, गदा, कूर्म व मीन आदि शुभ लक्षणों से शोभायमान था ।११ संसार के प्रति विरक्त होने के पश्चात् तीर्थंकर ऋषभदेव ने ज्येष्ठ पुत्र भरत को साम्राज्य पद पर आसीन किया। ऋषभदेव को जब केवलज्ञान की प्राप्ति हुई तभी भरत चक्रवर्ती के आयुधशाला में चक्ररत्न प्रकट हुआ। सर्वप्रथम भरत ने ही ऋषभदेव के समवसरण में जाकर उनके चरणों की और तदनन्तर वापस आकर चक्ररत्न की पूजा की और उसके साथ दिग्विजय के लिये प्रस्थान किया ।१२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002115
Book TitleJain Mahapurana Kalaparak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumud Giri
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1995
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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