________________
चतुर्थ अध्याय
शलाकापुरुष महापुराण (जिनसेन व गुणभद्रकृत ) में २४ तीर्थंकरों के अतिरिक्त अन्य ३९ शलाकापुरुषों के जीवन वृत्त भी वर्णित हैं। शलकापूरुषों की अभिव्यक्ति कला में भी हुई है। ज्ञातव्य है कि जैन कला में केवल भरत चक्रवर्ती, बलराम-कृष्ण एवं राम की ही मूर्तियाँ बनीं जबकि पाँचवें, छठे और सातवें चक्रवर्ती शान्तिनाथ, कुन्थुनाथ एवं अरनाथ ( जो तीर्थकर भी हैं ) की मूर्तियों की चर्चा तीर्थंकर से सम्बन्धित पिछले अध्याय में की जा चुकी है। चक्रवर्ती :
जैन पुराणों में वर्तमान अवसर्पिणी युग के १२ चक्रवतियों का निरूपण हुआ है जिनमें भरत, सगर, मधवा, सनत्कुमार, शान्तिनाथ, कुन्थु, अर, सुभौम, पद्म, हरिषेण, जयसेन तथा ब्रह्मदत्त सम्मिलित हैं । इन चक्रवर्तियों के सम्बन्ध में कुछ बातें विशेषतः उल्लेखनीय हैं। सभी चक्रवर्ती काश्यपगोत्री, स्वर्णवर्ण वाले तथा विश्व विजेता रूप में उल्लिखित हैं। सभी के वक्षःस्थल पर जिनों के समान श्रीवत्स का चिह्न पाया जाता है। सभी चक्रवर्तियों की माताएँ गर्भधारण करते समय कुछ शुभ स्वप्न देखती हैं। आदिपुराण' व महापुराण (पुष्पदन्तकृत ) में भरत चक्रवर्ती की माता द्वारा पाँच तथा हेमचन्द्र के अनुसार १४ शुभस्वप्नों के देखने का उल्लेख है। श्वेताम्बर व दिगम्बर दोनों परम्पराओं के अनुसार सभी चक्रवतियों को १४ रत्न-चक्र, दण्ड, खड्ग, छत्र, चर्म, मणि, काकिणि ( कौड़ी), अश्व, गज, सेनापति, गृहपति, शिल्पी, पुरोहित और स्त्री तथा ९ निधियाँ-नैयसर्प, पाण्डुक, पिंगल, सर्परत्न, महापद्म, काल, महाकाल, माणव तथा शंख प्राप्त होती हैं ।" ज्ञातव्य है कि चक्रवर्ती, विशेषतः भरत चक्रवर्ती की स्वतंत्र मतियों में परम्परानुरूप १४ रत्नों एवं ९ निधियों का अंकन हुआ है। (१) भरत चक्रवर्ती :
ऋषभनाथ के १०० पुत्रों में भरत ज्येष्ठ पुत्र और प्रथम चक्रवर्ती
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org