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________________ १०६ : जैन महापुराण : कलापरक अध्ययन धर्मोपदेश देकर तीर्थ की स्थापना की। किन्तु दिगम्बर मान्यतानुसार उनका प्रथम उपदेश राजगृह के विपुलांचल पर्वत पर हुआ था जबकि श्वेताम्बर मान्यतानुसार पावा के निकट किसी स्थल पर ।२५१ अनेक देशों में विहार व धर्मदेशना के बाद महावीर ने पावापुर नगर के मनोहर वन के मध्य स्थित मणिमय शिला पर विराजमान हो कात्तिक कृष्ण चतुर्दशी के दिन रात्रि के अन्तिम समय स्वातिनक्षत्र में एक हजार मुनियों के साथ मोक्ष पद प्राप्त किया।२५२ जैन मान्यतानुसार लगभग ५२७ ई० पू० में ७२ वर्ष की अवस्था में महावीर को निर्वाण पद प्राप्त हुआ। ___ सर्वप्रथम मथुरा में कुषाणकाल में महावीर की स्वतन्त्र मूर्तियों का निर्माण प्रारम्भ हुआ जिनमें किसी चिह्न या लांछन के स्थान पर पीठिका. लेखों में दिये गये 'वर्धमान' और 'महावीर' नामों के आधार पर तीर्थंकर की पहचान की गयी। महावीर के सिंह लांछन का अंकन लगभग छठी शती ई० में प्रारम्भ हुआ जिसका प्राचीनतम ज्ञात उदाहरण वाराणसी से प्राप्त और भारत कला भवन, वाराणसी ( क्रमांक १६१). में सुरक्षित है । महावीर के यक्ष-यक्षी मातंग एवं सिद्धायिका हैं । महावीर की मूर्तियों में लगभग नवीं शती ई० से यक्ष-यक्षी का अंकन प्रारम्भ हुआ जिनके सर्वाधिक उदाहरण उत्तर प्रदेश एवं मध्यप्रदेश स्थित मथुरा, देवगढ़, ग्यारसपुर एवं खजुराहो से मिले हैं (चित्र १८, १९,)। गुजरात और राजस्थान की महावीर मतियों में यक्ष-यक्षी के रूप में नेमिनाथ के सर्वानुभूति और अम्बिका को आकारित किया गया है। कुम्भारिया के महावीर और शान्तिनाथ मन्दिरों (११वीं शती ई०) और कल्पसूत्र के चित्रों में महावीर के पंचकल्याणकों तथा पूर्वभवों एवं तपस्या के समय शूलपाणि यक्ष, संगमदेव आदि के उपसर्गो, चन्दनबाला से महावीर के प्रथम भिक्षा ग्रहण के कथा प्रसंग दिखाये गये हैं (चित्र ४२-४३ )।२५3 एलोरा में महावीर की लगभग १२ मूर्तियाँ हैं जिनमें से ६ गुफा सं० ३०, ४ गुफा सं० ३२ और २ मूर्तियाँ गुफा सं० ३३ में हैं । यह मूर्ति संख्या स्पष्टतः एलोरा में पार्श्वनाथ के बाद महावीर की सर्वाधिक लोकप्रियता को प्रकट करती हैं। एलोरा की महावीर मूर्तियों में लक्षण की दृष्टि से एकरूपता और बादामी तथा अयहोल की चालुक्यकालीन महावीर मूर्तियों का परवर्ती विकास देखा जा सकता है। बादामी तथा अयहोल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002115
Book TitleJain Mahapurana Kalaparak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumud Giri
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1995
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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