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________________ १०० : जैन महापुराण : कलापरक अध्ययन से युक्त धरणेन्द्र और छत्रधारिणी पद्मावती की स्थानक आकृतियों का रूपायन आरम्भ हुआ जो कालान्तर में सभी क्षेत्रों में देखा जा सकता है । उत्तर भारत में पार्श्वनाथ की सर्वाधिक मूर्तियाँ मथुरा, देवगढ़ एवं खजुराहो जैसे स्थलों पर बनीं । खजुराहो, कुम्भारिया एवं. कई अन्य स्थलों पर पार्श्वनाथ के स्वतन्त्र मन्दिर भी बने । धरणेन्द्र-पद्मावती की पार्श्ववर्ती आकृतियों के साथ ही सिंहासन छोरों पर भी देवगढ़, खजुराहो, कुम्भारिया और देलवाड़ा की मूर्तियों में यक्ष-यक्षी का अंकन हुआ है। खजुराहो एवं देवगढ़ के दिगम्बर परम्परा की मूर्तियों में यक्ष-यक्षी धरणेन्द्र एवं पद्मावती हैं जबकि कुम्भारिया और देलवाड़ा की श्वेताम्बर मूर्तियों में यक्ष यक्षी के रूप में नेमिनाथ के कुबेर या सर्वोनुभूति यक्ष और अम्बिका यक्षी को आमूर्तित किया गया है । कुछ उदाहरणों में सर्वानुभूति और अम्बिका के शीर्षभाग में सर्पफणों का छत्र भी देखा जा सकता है। ओसियाँ और विमलवसही की देवकुलिका ४ की दो श्वेताम्बर मूर्तियों में सिंहासन छोरों पर पारम्परिक यक्ष-यक्षी पार्श्व एवं पद्मावती निरूपित हैं । 233 कुम्भारिया, देलवाड़ा और ओसियाँ में पार्श्वनाथ के जीवनदृश्यों का विस्तारपूर्वक अंकन भी किया गया है जिनमें पंचकल्याणकों के साथ ही कमठ के विभिन्न उपसर्गों को भी पूर्व विस्तार के साथ दर्शाया गया है ( चित्र ४१ ) । २३४ एलोरा में भी तीर्थंकरों में पार्श्वनाथ की ही सर्वाधिक मूर्तियाँ उत्कीर्ण हुईं जिसके ३१ से अधिक उदाहरण मिले हैं। मूर्ति संख्या की दृष्टि से अधिक होते हुए भी यह सर्वथा आश्चर्य की बात है कि किसी गुफा के गर्भगृह में पार्श्वनाथ की मूर्ति नहीं मिली है। एलोरा की जैन गुफाओं में गर्भगृह में सर्वदा महावीर की मूर्तियाँ ही उत्कीर्ण हैं। एलोरा में पार्श्वनाथ की लोकप्रियता न केवल उत्तरपुराण वरन् जिनसेन कृत पार्श्वभ्युदय में पार्श्वनाथ के जीवन चरित एवं उपसर्गों आदि के विस्तृत उल्लेख के परिप्रेक्ष्य में विशेष महत्त्वपूर्ण है । २३५ पार्श्वनाथ की ३१ मूर्तियों में से ९ उदाहरणों में पार्श्व ध्यानमुद्रा में आसीन और शेष में कायोत्सर्ग में निर्वस्त्र निरूपित हैं । पार्श्व की मूर्तियाँ या तो मण्डप में या वीथिकाओं में उकेरी हैं । प्रतिमालक्षण की दृष्टि से इन मूर्तियों में कोई लक्षणपरक भेद नहीं दिखाई देता है । पार्श्वनाथ की कायोत्सर्ग मूर्तियाँ अधिकांश उदाहरणों में कठिन साधना और तपस्या के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002115
Book TitleJain Mahapurana Kalaparak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumud Giri
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1995
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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