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________________ तीर्थंकर ( या जिन) : १०१ प्रतीक बाहुबली - गोम्मटेश्वर की मूर्तियों के सामने उकेरी गयी हैं क्योंकि पार्श्व एवं बाहुबली, दोनों ही कठिन तपस और साधना के प्रतीक हैं । पार्श्वनाथ की ध्यानस्थ मूर्तियों में त्रिछत्र, चामरधारी सेवक, सिंहासन, उड्डीयमान मालाधर एवं दुन्दुभिवादक जैसे प्रातिहार्यों की आकृतियाँ देखी जा सकती हैं, जबकि कायोत्सर्ग मूर्तियों में किसी भी प्रातिहार्य का अंकन नहीं हुआ है और उनमें शम्बर के उपसर्गों को पूरे विस्तार और विविधता के साथ दर्शाया गया है । यह तथ्य सम्भवतः इस बात का सूचक है कि कायोत्सर्ग मूर्तियाँ पार्श्व के कैवल्य प्राप्ति के पूर्व और तपस्या के समय को व्यक्त करती हैं । २३६ ध्यानस्थ मूर्ति के केवल एक उदाहरण में यक्ष-यक्षी कुबेर और अम्बिका की आकृतियाँ उत्कीर्ण हैं । ' पार्श्व की सभी ध्यानस्थ एवं कायोत्सर्ग मूर्तियों में सिर पर सात सर्पफणों का छत्र दिखाया गया है। गुफा संख्या ३२ में पार्श्व की सर्वाधिक मूर्तियाँ (१२) उत्कीर्ण हैं, जबकि गुफा सं० ३०, ३१, ३३ और ३४ में क्रमशः ५, २, १० और २ मूर्तियाँ उकेरी हैं ( चित्र १३, १६ ) । परिकर में शम्बर के उपसर्गों के विस्तृत अंकन की दृष्टि से एलोरा की पार्श्वनाथ मूर्तियाँ सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण हैं क्योंकि ग्यारसपुर के मालादेवी मन्दिर ( विदिशा, म० प्र०), भारतीय संग्रहालय, कलकत्ता, हुम्मच ( शिमोगा, कर्नाटक ) एवं कुछ अन्य उदाहरणों के अतिरिक्त उपसर्गों का उकेरन पार्श्वनाथ की स्वतंत्र मूर्तियों में सामान्यतः नहीं हुआ है। कुम्भारिया की ११वीं शती ई० के महावीर और शांतिनाथ मन्दिरों (खेताम्बर ) के वितानों पर पार्श्वनाथ के जीवन दृश्यों के अंकन के प्रसंग में विभिन्न उपसर्गों का भी चित्रण हुआ है । एलोरा में उपसर्गों के सन्दर्भ में शम्बर की तीन से आठ आकृतियाँ विभिन्न आक्रामक मुद्राओं एवं शस्त्रों के साथ दिखाई गयी हैं । जैन महापुराण एवं पूर्ववर्ती मूर्त उदाहरणों में सर्पफणों के छत्र से युक्त धरणेन्द्र और पार्श्वनाथ के सिर के ऊपर छाया करते लम्बे छत्र को धारण करने वाली पद्मावती की आकृतियाँ एलोरा की मूर्तियों में दोनों पावों में आकारित हैं । एलोरा की कायोत्सर्ग मूर्तियों में, एक उदाहरण ( गुफा सं० ३१ ) के अतिरिक्त, मानवदेहधारी धरणेन्द्र को नहीं दिखाया गया है । इन उदाहरणों में धरणेन्द्र को केवल पार्श्वनाथ के सिर पर दिखाये गये सर्पफणों के छत्र और सम्पूर्ण शरीर को परिवेष्ठित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002115
Book TitleJain Mahapurana Kalaparak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumud Giri
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1995
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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