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९८ : जैन महापुराण : कलापरक अध्ययन
पार्श्वनाथ के ध्यान के प्रभाव से सारा उपसर्ग दूर हो गया । २२७ ज्ञातव्य है कि यही धरणेन्द्र और पद्मावती पार्श्वनाथ के यक्ष-यक्षी हुए जिन्हें श्वेताम्बर और दिगम्बर स्थलों की मूर्तियों में पार्श्वनाथ के दोनों पार्श्वो गुप्तकाल के बाद से ही निरूपित किया गया ।
पार्श्वनाथ की तपस्या की अवधि में पूर्वजन्म के बैरी कमठ के शम्बर ( या मेघमाली - श्वेताम्बर ) नामक असुर के रूप में उपस्थित किये गये तरह-तरह के उपसर्गों का श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों ही परम्परा के ग्रन्थों में अत्यधिक विस्तार के साथ उल्लेख हुआ है। उत्तरपुराण के अतिरिक्त आदिपुराण के कर्त्ता जिनसेन के पाश्वभ्युदय काव्य ( ल ७८३ ई० ) में भी कमठ के उपसर्गों का उल्लेख हुआ है । पाश्वभ्युदय में उपसर्गों के अन्तर्गत केवल सुन्दर अप्सराओं एवं पार्श्व के ऊपर विशाल शिला खण्डों के फेंके जाने का ही उल्लेख हुआ है । २२८ उत्तरपुराण में इन उपसर्गों का किंचित् विस्तार हुआ और लगातार ७ दिनों तक शम्बर द्वारा उपस्थित किये गये उपसर्गों का उल्लेख हुआ किन्तु शिलाखण्डों और अतिवृष्टि के अतिरिक्त अन्य किसी उपसर्ग का सन्दर्भ नहीं दिया गया है । सर्वप्रथम पद्मकीर्ति के पासनाहचरिउ (१०७७ ई० ) में विभिन्न उपसर्गों का विस्तारपूर्वक उल्लेख किया गया है । २२९ इसके अन्तर्गत शम्बर के अलग-अलग स्वरूप धारण करने और पार्श्वनाथ का ध्यान भंग करने के लिये बज्र, बाण, शूल, मुद्गर और परशु जैसे घातक अस्त्रों द्वारा पीड़ित करने एवं शार्दूल, सिंह, सर्पं, श्वान, कपि, रीछ, महिष, वराह, गज और वृषभ जैसे पशुओं का रूप धारण कर पार्श्वनाथ का ध्यान भंग करने की असफल चेष्टा का उल्लेख हुआ है । साथ ही वैताल, पिशाच, डाकिनी और विभिन्न ग्रहों द्वारा पार्श्व को भयाक्रान्त एवं विभिन्न अप्सराओं द्वारा आकर्षित करने की चेष्टा का भी सन्दर्भ है । अन्त में निराश होकर शम्बर ने महावृष्टि द्वारा पार्श्व का ध्यान भंग कर उन्हें जल में डुबो देना चाहा जिससे नागराज धरणेन्द्र ने उनकी रक्षा की । शम्बर ने नागराज धरणेन्द्र पर भी वज्र और शिलाखण्डों से आक्रमण किया । किन्तु किसी भी प्रकार पार्श्व का ध्यान भंग करने में सफल नहीं हुआ । अन्त में उसने पार्श्व से क्षमायाचना की ।
श्वेताम्बर परम्परा में भी पार्श्वनाथ की साधना के मध्य उपस्थित विभिन्न उपसर्गों का वर्णन मिलता है। इसमें भी उल्लेख है कि पूर्व जन्म के वैरी कमठ के जीव, जो मेघमाली नामक असुर हुआ, ने सिंह, चीता,
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