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________________ ९६ : जैन महापुराण : कलापरक अध्ययन चक्रधारी कृष्ण का अंकन हुआ है जिसके परवर्ती उदाहरण मथुरा के अतिरिक्त देवगढ़ से भी मिले हैं ( चित्र ८) । नेमिनाथ की मूर्तियाँ जहाँ पर लोकप्रियता के क्रम में ऋषभनाथ, पार्श्वनाथ एवं महावीर के बाद रही हैं वहीं दक्षिण भारत में नेमिनाथ की मूर्तियों के उदाहरण लगभग नगण्य हैं। लूणवसही, कुम्भारिया तथा कई अन्य स्थलों पर नेमिनाथ के स्वतन्त्र मन्दिर भी बने हैं। सर्वाधिक मूर्तियाँ देवगढ़, खजुराहो, मथुरा से प्राप्त हुई हैं जिनमें शंख लांछन और यक्ष-यक्षी के रूप में कुबेर-अंबिका का अंकन हआ। कुम्भारिया के शान्तिनाथ व महावीर मन्दिरों तथा विमलवसही व लूणवसही और कल्पसूत्र के चित्रों में नेमिनाथ के जीवन दृश्यों का विस्तारपूर्वक अंकन हुआ है (चित्र ३९-४० )। इन दृश्यों में पंचकल्याणकों के अतिरिक्त कृष्ण की आयुधशाला में नेमि के शक्ति प्रदर्शन और पिंजरे में बन्द पशुओं को देखकर नेमिनाथ के मन में उत्पन्न हुए विरक्ति के प्रसंगों को भी दर्शाया गया है ।२१९ । ____ एलोरा में नेमिनाथ की केवल एक मूर्ति मिली है जो गुफा सं० ३० में उत्कीर्ण है। नेमिनाथ की अम्बिका यक्षी की १२ स्वतन्त्र मूर्तियों के परिप्रेक्ष्य में नेमिनाथ की केवल एक मूर्ति का मिलना आश्चर्यजनक है। सिंहासन, त्रिछत्र, प्रभामण्डल, चामरधर जैसे प्रातिहार्यों से सेवित नेमिनाथ के साथ यक्षी रूप में अम्बिका ( बालक सहित ) की आकृति भी बनी है। २३. पार्श्वनाथ: २३वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ को ऐतिहासिक व्यक्ति और जैनधर्म का संस्थापक माना गया है जिनके चातुर्याम ( सत्य, अहिंसा, अस्तेय, अपरिग्रह ) में महावीर ने केवल ब्रह्मचर्य को जोड़कर पंचमहाव्रत का उपदेश दिया। यह भी सन्दर्भ मिलता है कि महावीर के माता-पिता पार्श्वनाथ द्वारा स्थापित जैनधर्म के अनुयायी थे। उत्तराध्ययनसूत्र ( अध्याय २३ ) में पार्श्वनाथ और महावीर के दो शिष्यों केसी और गौतम के मध्य जैन संघ के सम्बन्ध में हुए वार्तालाप का उल्लेख२२० तथा महावीर की यह उक्ति कि 'जो कुछ पूर्व तीर्थंकर पार्श्व ने कहा है मैं वही कह रहा हूँ'२२१ पार्श्वनाथ की ऐतिहासिकता सिद्ध करते हैं। जैनपुराणानुसार उनका निर्वाण महावीर के निर्वाण से ३५० वर्ष पूर्व, तद्नुसार ५२७ + २५० = ७७७ वर्ष ई० पू० में हुआ था।२२२ पार्श्वनाथ का जन्म काशी के वाराणसी नगर के काश्यपगोत्री राजा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002115
Book TitleJain Mahapurana Kalaparak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumud Giri
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1995
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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