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जैनधर्म की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि : ७५.
तथ्य इनके शिष्य मतिकीति रचित "नियुक्ति-स्थापन" प्रश्नोत्तर ग्रन्थ की प्रशस्ति से ज्ञात होता है ।' जहाँगीर अपने शासन के पश्चात्वर्ती काल में जैन मत एवं मतावलम्बियों से क्रुद्ध एवं असन्तुष्ट हो गया था, जिसका कारण सम्भवतः राजनीतिक ही था। बीकानेर के मन्त्री व जैनियों के मार्गदर्शक मानसिंह ने खुसरो के विद्रोह के समय यह भविष्यवाणी की थी कि दो वर्ष में जहांगीर का शासन समाप्त हो जायेगा; इससे चिढ़कर ही १६१६ ई० की अपनी गुजरात यात्रा के समय उसने जैनाचार्यों पर अनैतिक व्यवहार का एवं जैन मन्दिरों पर उपद्रव एवं असन्तोष के केन्द्र होने का आरोप लगा कर जैनियों को अपने साम्राज्य से निर्वासित करने की भी घोषणा की, जो बाद में वापस भी ले ली गई थी। अपने शासन के पूर्ववर्ती काल में तो वह अपने पिता की भाँति जैनाचार्यों को अत्यधिक सम्मान करता रहा ।।
सम्राट शाहजहाँ के शासनकाल में १६२९ ई० में आचार्य जिनराज सूरि आगरा में सम्राट् से मिले थे और वहाँ वाद-विवाद में ब्राह्मण विद्वानों को पराजित किया था। इन्होंने सम्राट से आग्रह करके कुछ निषेध हटवाये थे । तत्कालीन मुगल अधिकारी भी इनके प्रशंसक थे, जैसे खान एवं आलम दीवान आदि । १६४५ ई० के आसपास, सिन्धु देश में विहार करते समय, उपाध्याय समय सुन्दर ने सिद्धपुर के मखनूम महमूद शेख को प्रतिबोध देकर पंचनदीय जलचर जीवों तथा गौरक्षा की “अमारि" घोषणा करवाई थी।
१. बल्लभ भारती, पृ० १७० । २. खरतरगच्छ का इति०, पृ० १९६ । ३. बल्लभ भारती, पृ० १६९ ।
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