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________________ जैनधर्म की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि : ६७ भी दो बार इसके विध्वंसक आक्रमण का शिकार हुआ। १३०३ ई० में अलाउद्दीन ने चित्तौड़ को जीतकर दुर्ग स्थित मन्दिरों को ध्वस्त किया। जालौर, भीनमाल, बाड़मेर, आबू आदि निकटवर्ती क्षेत्रों को भी विनाश सहना पड़ा। दो संस्कृत एवं दो फारसी अभिलेखों से स्पष्ट है कि सांचौर की जामा मस्जिद, अलाउद्दीन खिलजी के उत्तराधिकारी और पुत्र नासिरुद्दीन के शासनकाल में, महावीर जैन मन्दिर के ध्वंस की प्राप्त सामग्री से बनाई गई थी। जिनप्रभ सूरि के "तीर्थकल्प" से स्पष्ट है कि सांचौर में एक भव्य जैन मन्दिर विद्यमान था और तीन बार इस पर मुस्लिम आक्रमण का खतरा मंडराया था तथा अन्त में १३१० ई० के आक्रमण में यह नष्ट कर दिया गया। यही नहीं, बल्कि ध्वंस का तथाकथित नायक अलाउद्दीन खिलजी प्रतिमा को दिल्ली ले गया और उसके टुकड़े-टुकड़े कर दिये। तारीख-ए-फरिश्ता में भी इस घटना का वर्णन है। ___ मारवाड़ में जालौर की मस्जिद के स्तम्भ लेखों से यह स्पष्ट है कि इसका निर्माण कम से कम चार मन्दिरों के विध्वंस से प्राप्त सामग्री से किया गया था, जिनमें से एक हिन्दू मन्दिर और शेष तीन जैन मन्दिर थे, जो तीर्थंकर आदिनाथ, महावीर और पार्श्वनाथ के निमित्त बने हये थे।२ सिरोही राज्य में जीरावला के नेमिनाथ मन्दिर के लेख से विदित होता है कि यह मन्दिर मूलतः पार्श्वनाथ को समर्पित था। इसके नाम परिवर्तन के सम्बन्ध में प्रचलित अनुश्रुति के अनुसार 'बोकड़ पातशाह" नामक मुस्लिम शासक के राज्यकाल में कुछ मुसलमान सैनिकों के द्वारा पार्श्वनाथ प्रतिमा तोड़-फोड़ दी गई एवं लूटपाट भी की गई। ३ जीरावला पाश्वनाथ स्तवन के ७वें श्लोक में अलाउद्दीन द्वारा भी १३११ ई० में मन्दिर को ध्वस्त करने का विशेष रूप से वर्णन है।। १५७६ ई० में अकबर के सिरोही आक्रमण के समय लगभग १०५० जैनप्रतिमाएँ मुगलों द्वारा लूट ली गई थीं, जो बाद में बीकानेर के राजा रायसिंह को लौटा दी गई थीं। हुमायं के भाई कामरान ने बीकानेर आक्रमण के समय जैन मन्दिर भी ध्वस्त किये थे। बीकानेर के चिन्तामणि मन्दिर में १५३५ ई० के एक प्रतिमा लेख से विदित होता है कि मूर्ति का परिकर भी उसके द्वारा नष्ट किया गया था। कनक सोम के १. प्रोरिआसवेस, १९०७-८, पृ० ३४-३५ । २. वही, १९०८-९, पृ० ५४-५७ । ३. वही, १९१६-१७, पृ० ६७ । ४. बीजैलेस-भूमिका । ५. बीजलेस, क्र० २ । ६. वही । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002114
Book TitleMadhyakalin Rajasthan me Jain Dharma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajesh Jain Mrs
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1992
Total Pages514
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size21 MB
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