SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 86
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैनधर्म की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि : ६३ बालचन्द के पुत्र रामचन्द्र ने प्रधानमन्त्री के रूप में अपनी सेवाएँ महाराजा जगतसिंह को प्रदान की। अपने गहन धार्मिक विचारों के कारण उसने तीर्थों को जाने वाले कई संघों का नेतृत्व किया, एतदर्थ उन्हें संघपति की उपाधि से भी सम्मानित किया गया था। भट्टारक सुरेन्द्र कीति के उपदेशों के सुलाभ से इन्होंने १८०१ ई० में जूनागढ़ में यन्त्र प्रतिष्ठा सम्पन्न की थी।' जयपुर राज्य के अन्य भागों में भी जैनधर्म का संवर्द्धन होता रहा । १६९४ ई० में विजयसिंह के शासनकाल में जोबनेर के जैसा ने अपने पुत्रों के साथ प्रतिमाएं स्थापित की ।२ १६५३ ई. के एक अभिलेख से विदित होता है कि शाहजहाँ के शासनकाल में जब मालपुरा पर अर्जुन गौड़ का राज्य था, तब संघी नाडा, भीखा, सम्भु और लालचन्द ने एक 'बृहद दस लक्षण यन्त्र' का स्थापना समारोह सम्पन्न करवाया था। यह अभिलेख मालपुरा के आधिपत्य के सम्बन्ध में इस महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक तथ्य की ओर इंगित करता है कि जयपुर के कछावों के स्थान पर इस समय यहाँ पर मारोठ के शासक अर्जुन गौड़ का नियन्त्रण था। १६०४ ई० के सीकर क्षेत्र के रेवांसा के एक अभिलेख में वर्णन मिलता है कि बादशाह अकबर के शासनकाल में महाराजाधिराज रायसाल के मुख्यमंत्री देवीदास के दो पुत्रों, साहजीतमल एवं भाई नथमल के द्वारा आदिनाथ का मन्दिर निर्मित करवाया गया था। मन्त्री देवीदास खण्डेलवाल जाति का श्रावक था एवं मन्दिर निर्माण की पृष्ठभूमि में मूलसंघ के भट्टारक यशकीर्ति की उपदेशों की सत्प्रेरणा थी।४ १६०७ ई० में महाराजा जग्गनाथ के शासनकाल में टोडारायसिंह के आदिनाथ मन्दिर में "आदिनाथ पराण" की एक प्रति नान के द्वारा लिखवाई गई थी। इसी कस्बे के राजा राजसिंह के मन्त्री वादिराज ने १६७२ ई० में “वाग-भट्टालंकाराव चूरि'' तथा “कवि चन्द्रिका" लिखी थी।६ १७२६ ई० के एक अभिलेख में चूहड़सिंह के शासनकाल में हृदयराम के द्वारा जयपुर के निकट बाँसखोह में प्रतिमाओं के स्थापना समारोह सम्पन्न करवाये जाने का उल्लेख है । चूहड़सिंह सम्भवतः इस स्थान का कोई क्षेत्रीय सामन्त प्रतीत होता है । (८) अलवर राज्य में जैन धर्म : उत्तरवर्ती काल में भी अलवर में जैनधर्म निरन्तर लोकप्रिय धर्म बना रहा । १६२४ १. जैइरा, पृ० ४७ । २. वही, पृ० ४८ । ३. वही, पृ० ४८। ४. एरिराम्यूअ, १९३४-३५, क्र० ११ । ५. प्रस, पृ० ८९ । ६. जैग्रप्रस, क्र० १४१ । ७. जैइरा, ४९। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002114
Book TitleMadhyakalin Rajasthan me Jain Dharma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajesh Jain Mrs
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1992
Total Pages514
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy