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________________ ६२: मध्यकालीन राजस्थान में जैनधर्म एवं आस्था थी। इन्होंने चातसू में एक जैन मन्दिर बनवाया तथा जयपुर का "चातसू का चौक" नामक विशाल जैन मन्दिर भी इनके द्वारा ही निर्मित करवाया गया था। अपनी हवेली में भी इन्होंने एक चैत्यालय निर्मित करवाया था। ये महेन्द्र कीर्ति के पट्टसमारोह एवं अभिषेक में भी सम्मिलित हुये थे। इसकी पुष्टि अखईराम द्वारा लिखित महेन्द्र कीर्ति की ‘जकरी' से होती है।' १७४० ई० में मन्त्री विजयराम छाबड़ा ने 'सम्यक्त्व कौमुदी' लिखवा कर पण्डित गोवर्धन को भेंट स्वरूप प्रदान की थी। जयसिंह के शासनकाल में ही "कर्मकाण्ड सटीक" को प्रति भी निबद्ध की गई थी। सवाई माधोसिंह के संकटपूर्ण शासनकाल में भी जैन धर्म की प्रगति सतत प्रवाहमान रही । जयसिंह के राज्यकाल की भांति कई राजनीतिज्ञों ने इन्हें भी निष्ठापूर्वक सेवाएँ प्रदान की। १७६१ ई० में बालचन्द छाबड़ा सवाई माधोसिंह के प्रधानमन्त्री बने । इनके पूर्व, इस पद पर श्यामराम नामक असहिष्णु ब्राह्मण था, जिसने प्रतिशोध के कारण कई जैन मन्दिरों को नष्ट करवा दिया था। बालचन्द के काल में जैन धर्म को एक नया जीवन प्राप्त हुआ। उसने पुराने मन्दिरों का जीर्णोद्धार करवाया तथा कई नये मन्दिर भी निर्मित करवाये । १७६४ ई० में बालचन्द्र के सत्प्रयासों के फलस्वरूप जयपुर में इन्द्रध्वज पूजा महोत्सव मनाया गया। राज्य ने इस महोत्सव के लिये हर सम्भव सुविधाएँ और सहायता प्रदान की। दीवान रतनचन्द्र साह ने भी एक जैन मन्दिर बनवाया और इन्द्रध्वज पूजा महोत्सव में सम्मिलित हुये । नन्दलाल ने जयपुर एवं सवाई माधोपुर में जैन मन्दिर निर्मित करवाया। इसने १७६९ ई० में पृथ्वीसिंह के शासनकाल में सवाई माधोपुर में भट्टारक सुरेन्द्र कीर्ति के परामर्श पर विशाल स्तर पर प्रतिमाओं का स्थापना समारोह आयोजित करवाया। दीवान केसरीसिंह कासलीवाल ने जयपुर में सिरमौरिया का एक सुन्दर जैन मन्दिर निर्मित करवाया। माधोसिंह के काल में जयपुर में कन्हैयाराम ने “वैद्यों का चैत्यालय" नामक जैन मन्दिर निर्मित करवाया।६ १७७० ई० के सांभर के एक फारसी लेख में जैन मन्दिरों को भी अन्य ठाकुर-द्वारों के साथ ही पैमाइश से मुक्त करने का उल्लेख है।" १. जयपुर के पाटोदी जैन मन्दिर में गुटका सं० १८९ । २. इस हस्तलिखित ग्रन्थ की प्रति आमेर शास्त्र भण्डार में है। ३. प्रस, पृ० ७ । ४. वीरवाणी, पृ० २९-३० । ५. जैइरा, पृ० ४७ । ६. वही। ७. एन्युअल रिपोर्ट, इ० ए०, १९५५-५६, क्र० डी० १४८ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002114
Book TitleMadhyakalin Rajasthan me Jain Dharma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajesh Jain Mrs
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1992
Total Pages514
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size21 MB
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