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जैनधर्म की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि : ६१ में चातसू में भट्टारक चन्द्रकीति के द्वारा एक स्तम्भ निर्मित करवाया गया था।' इनके ही शासनकाल में राजमहल और संग्रामपुर में १६०४ ई० में, १६०५ ई० में "हरिवंश" की दो प्रतियों की रचना की गई थी। १६०७ ई० के अभिलेख से विदित होता है कि मानसिंह के शासनकाल में अमात्य नानू गोधा के समय, जेता ने अपने पुत्रों एवं पौत्रों के साथ मौजमाबाद में विशाल स्तर पर प्रतिमाओं का प्रतिष्ठा समारोह आयोजित करवाया था ।४ १६०५ ई० में महाराजाधिराज रायसिंह के विजय राज्य में जयपुर के मसुतिनाथ मन्दिर में मूल नायक प्रतिमा की प्रतिष्ठा युग-प्रधानजिनचन्द्र सूरि के द्वारा सम्पन्न हुई थी। जयपुर के पंचायती मन्दिर की पार्श्वनाथ प्रतिमा के एक लेख में महाराजा राजसिंह के राज्य में प्रतिष्ठा सम्पन्न होने का उल्लेख है।
मिर्जा राजाजयसिंह के शासनकाल में भी जैनधर्म निरन्तर प्रगति करता रहा। मुगल सम्राट शाहजहाँ एवं जयपुर के राजा जयसिंह के शासन का १६५४ ई० का एक लेख सांगानेर के गोधा जैन मन्दिर के शिला-फलक पर उत्कीर्ण है। आमेर के जैन मन्दिर के अभिलेख से विदित होता है कि जयसिंह के प्रधानमन्त्री खण्डेलवाल मोहनदास ने आमेर में विमलनाथ का एक मन्दिर निर्मित करवा कर उसे स्वर्ण-कलश से सुशोभित किया था। इसी अभिलेख में आगे यह भी वर्णित है कि इस समय ही उक्त मन्दिर में मोहनदास ने और भी निर्माण कार्य सम्पन्न करवाया था।
सवाई जयसिंह एक विद्वान् शासक था, उनके राज्य में तीन जैन दीवान पद पर रहे-रामचन्द्र छाबड़ा, राव कृपाराम व विजयराम छाबड़ा । इस समय इन राजनयिकों ने जैन धर्म के उन्नयन में प्रशंसनीय योगदान दिया। रामचन्द्र छाबड़ा ने जयपुर और रामगढ़ के मध्य शाहबाद में एक जैन मन्दिर का निर्माण करवाया था । ये अपने पुत्र किशनसिंह के साथ भट्टारक देवेन्द्र कीति के पट्ट समारोह में भी सम्मिलित हुये थे। इस तथ्य की पुष्टि नेमिचन्द्र रचित भट्टारक देवेन्द्र कीर्ति की "जकरी" से होती है। मन्त्री कृपाराम की भी धार्मिक गतिविधियों में गहन रुचि १. एरिराम्यूअ, १९२७-२८, क्र० ११ । २. प्रस, पृ० ७२। ३. वही, पृ० ७२ । ४. जैइरा, पृ० ४५ । ५. प्रलेस, क्र० १०८१ । ६. प्रलेस, ११६१। ७. ऐरिराम्यूअ, १९२५-२६, क्र० ११ । ८. वही, १९३३, ३४, क्र० १३ । ९. जयपुर के पाटोदी जैन मन्दिर में गुटका सं० १८९ ।
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