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________________ ६० : मध्यकालोन राजस्थान में जैनधर्म धारण करने वाले विजयदेव सूरि के नेतृत्व में सम्पन्न हुई थी। १७३७ ई० में महाराणा अभयसिंह के शासनकाल में जब बख्तासिंह और बैरीसाल मारोठ के ऊपर राज्य कर रहे थे, तब साहा के मन्दिर एवं प्रतिमाओं का प्रतिष्ठा समारोह आयोजित हुआ था। यह उत्सव दोवान रामसिंह के द्वारा आयोजित करवाया गया था। मारोठ जोधपुर के राठौड़ों के अधिकार में था यह तथ्य इस अभिलेख से सिद्ध होता है, अतः इसका ऐतिहासिक महत्त्व भी है । अभयसिंह के पुत्र रामसिंह के शासनकाल में १७४६ ई० में गिरधरदास ने बिलाड़ा का मन्दिर बनवाया था। १७६७ ई० में इनके ही एक सामन्त हुक्मसिंह नामक मेड़तिया राजपूत के शासन में हर्षोल्लास पूर्वक एक रथयात्रा महोत्सव मनाया गया, इस अवसर पर मारोठ में भट्टारक विजयकीर्ति भी उपस्थित हुये थे। बीकानेर क्षेत्र में भी वहाँ के उत्तरवर्ती शासकों ने जैनमत को प्रोत्साहन देने का क्रम प्रारम्भ रखा। १६३१ ई० में कर्णसिंह ने जैन उपाश्रय के निर्माण हेतु भूमि का अनुदान दिया था। महाराजा अनुपसिंह के जिनचन्द्र सूरि और जैन कवि धर्मवर्द्धन से बड़े सुमधुर एवं आत्मीय सम्बन्ध थे । कवि धर्मवद्धन सूरि ने राजा अनूपसिंह के राज्यारोहण के अवसर पर एक स्तुति पद्य की रचना की थी, जिसमें राजा की कला, साहित्य एवं धर्म के बहुचचित संरक्षक के रूप में प्रशंसा की थी। जिनचन्द्र सूरि एवं बीकानेर के महाराजाओं, जैसे-अनूपसिंह, जोरावरसिंह, सज्जनसिंह व गजसिंह के मध्य सम्मानजनक पत्र व्यवहार होता रहता था। १७६५ ई० में जैन मुनियों के प्रशंसक एवं भक्त, महाराजा सूरतसिंह बीकानेर के शासक बने । वे जिनसागर मुनि का सम्मान नारायण के अवतार के रूप में करते थे। इन्होंने कतिपय जैन उपाश्रयों के निर्माण हेतु भूमि अनुदान में दी थी। इनका दादाजी के प्रति भी बहुत आदर भाव था, एतदर्थ पूजा के व्यय संचालन हेतु उन्होंने १५० बीघा जमीन दान में दी थी। (७) जयपुर राज्य में जैन धर्म : १७वीं व १८वीं शताब्दी में जयपुर क्षेत्र में भी जैन धर्म अत्यन्त उन्नतिशील अवस्था में था। जयपुर मुस्लिम विध्वंस की आशंका की दृष्टि से सौभाग्यशाली रहा, क्योंकि यहाँ के राजाओं के मुगल बादशाहों से अच्छे सम्बन्ध थे। इस काल में जयपुर क्षेत्र में दिगम्बर आचार्यों का अधिक वर्चस्व रहा। राजा मानसिंह के काल में १६०५ ई० १. नाजैलेस, १, क्र० ८३७, पृ० २०७ । २. मारोठ के मंदिर का एक स्तम्भ लेख । ३. नाजैलेस, १, क्र० ९३७ । ४. जैइरा, पृ० ४५ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002114
Book TitleMadhyakalin Rajasthan me Jain Dharma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajesh Jain Mrs
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1992
Total Pages514
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size21 MB
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