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________________ जैनधर्म की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि : ५९. की प्रतिमा स्थापित की।' यह अभिलेख ऐतिहासिक दृष्टि से भी महत्त्व रखता है, क्योंकि इससे सिद्ध होता है कि सिरोही राज्य का अंग कापर्डी, उस समय जोधपुर राठौड़के शासकों के अन्तर्गत था । सम्भवतः राठौड़ों का इस पर अधिकार सूर्यसिंह द्वारा सुरताणसिंह के समर्पण के उपरान्त हुआ होगा । अभिलेख से यह भी स्पष्ट है कि आदिनाथ, महावीर और पार्श्वनाथ के मदिरों में 14 ई० में जालौर के शासक गणसिंह के शासनकाल में जयमल के द्वारा नई प्रतिमाएं निर्मित करवाई गई। जालौर के १६२४ ई० के महावीर मन्दिर के लेख में बल्लेख है कि महावीर बिम्ब की प्रतिष्ठा विजयदेव सूरि द्वारा हुई थी। जालौर के ही १६२६ ई० के लेख में मुहणोत परिवार द्वारा गजसिंह के राज्य में धर्मनाथ की बिम्ब प्रतिष्ठा का उल्लेख है। इनके शासनकाल में ही मेड़ता" और पाली में १६२९ ई० में कतिपय प्रतिमाएं स्थापित की गई थीं। मेड़ता की प्रतिमा के लेख से ज्ञात होता है कि बाई पूर्णा मनिया ने अपने पुत्रों के साथ सुमति नाथ की प्रतिमा की स्थापना की थी। पाली की पार्श्वनाथ की प्रतिमा के लेख में गजसिंह के शासनकाल व उनके कवर अमरसिंह का उल्लेख है तथा पाली पर जसवंत के पुत्र जग्गनाथ चौहान का अधिकार होने का उल्लेख है। यह प्रतिमा पाली निवासी श्रीमाल जातीय दो भाई डूनीगर और भवार के द्वारा बनवाई गई थी। ऐसा प्रतीत होता है कि पाली के चौहान राजा जग्गनाथ ने जोधपुर के राठौड़ शासकों का प्रभुत्व स्वीकार कर लिया था एवं जैन मत को संरक्षण दिया। १६२९ ई० के पाली के प्रतिमा लेख में जगत् गुरु तथा गच्छाधिपति हीरविजय सूरि एवं विजयसेन सूरि का उल्लेख है । १६२९ ई० के नाडौल लेख में महाराज गजसिंह और विजयदेव सूरि का उल्लेख है । १६२९ ई० के पाली के नौलखा मन्दिर के लेख में महावीर की प्रतिमा की प्रतिष्ठा किये जाने का उल्लेख है। १६२९ ई० के ही महाराजा गजसिंह के शासनकाल के जालोर के लेख में, राज्य के प्रमुख न्यायाधीश जयमल्ल के पुत्र जैसा द्वारा चन्द्रप्रभु के बिम्ब की प्रतिष्ठा का उल्लेख है, जो जहाँगीर प्रदत्त महातपा के विरुद को १. नाजैलेस, क्र० ९८१ । २. प्रोरिआसवेस, १९०८-०९, पृ० ५५ । ३. नाजैलेस, १, क्र० ९०४, पृ० २४१ । ४. वही, क्र० ९०५ । ५. वही, क्र० ७८३ । ६. प्रोरिआसवेस, १९०७-०८, पृ० ४५ । ७. नाजैलेस, १, क्र० २२९, पृ० २०३ । ८. वही, क्र० ८३७, पृ० २०७ । ९. वही, क्र० ८२६, पृ० २०३ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002114
Book TitleMadhyakalin Rajasthan me Jain Dharma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajesh Jain Mrs
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1992
Total Pages514
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size21 MB
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