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५८ : मध्यकालीन राजस्थान में जैनधमं
पर स्तम्भ निर्मित करवाया गया। इस प्रकार जैन धर्म का प्रारम्भिक काल से ही यहाँ काफी प्रभाव रहा । भौगोलिक विशेषताओं, शुष्क प्रकृति व आवागमन के सुलभ साधनों के अभाव के फलस्वरूप जैसलमेर प्रदेश सामान्यतः बाह्य आक्रमणकारियों के प्रभाव से बचा रहा । यह क्षेत्र शान्ति व सुरक्षा का क्षेत्र था, इसी से प्रभावित होकर जैन श्रेष्ठियों ने यहाँ अपना निवास चुना; अतः यह जैनाचार्यों की धर्मस्थली बन गया । सुरक्षा की दृष्टि से जैनाचार्यों ने प्राचीन ताड़पत्रीय ग्रंथादि साहित्य, यहाँ संग्रहीत किया । जैसलमेर ग्रंथ भण्डारों के लिये सारे देश में प्रसिद्ध है । यहाँ दुर्लभ, प्राचीन एवं हस्तलिखित ग्रन्थों एवं चित्रों का अनुपम संग्रह है ।
(६) जोधपुर एवं बीकानेर राज्यों में जैन धर्म :
जोधपुर एवं बीकानेर राज्यों में भी उत्तर मध्यकाल में जैन धर्म अविरल फलताफूलता रहा । १६०९ ई० के कोकिन्द के पार्श्वनाथ मन्दिर के लेख में महाराजा शूरसिंह, कुमार गजसिंह व जैन आचार्य विजयकुशल, सहजसागर, विजय जयसागर आदि का उल्लेख हैं । रावल तेजसिंह के शासनकाल में संघ के द्वारा शांतिनाथ मन्दिर का जीर्णोद्धार सम्पन्न हुआ । ऋषभदेव मन्दिर के अभिलेख में वर्णित है कि रावल तेजसिंह के शासनकाल में भट्टारक विजयदेव सूरि ने अपने उपदेशों से १६१० ई० में इस मन्दिर का कुछ भाग पुनर्निर्मित करवाया । इस स्थान के जैन समुदाय ने रावल जगमाल के शासनकाल में नाकोड़ा पार्श्वनाथ तीर्थ के निमित्त १६२९ ई० में चतु:शिकीका का निर्माण करवाया । १६२४ ई० में पार्श्वनाथ मन्दिर में रावल जगमाल के शासनकाल में ही जैन समाज के द्वारा एक निर्गम चतुःशिकीका, जिसमें तीन खिड़कियाँ भी थीं, का निर्माण करवाया गया ।
जोधपुर के राठौर शासकों ने धार्मिक सहिष्णुता की नीति का निरन्तर पालन किया । १६१२ ई० में सूर्यसिंह के शासनकाल में वस्तुपाल ने अपनी भार्या और पुत्र सहित पार्श्वनाथ की प्रतिमा का स्थापना समारोह सम्पन्न किया । गजसिंह के शासनमें १६२९ ई० में भामा ने कापड़ में अपनी पत्नी, पुत्रों एवं पौत्रों के साथ पार्श्वनाथ
१. नाजैलेस, ३ क्र० २५११ ।
२. वही, १, क्र० ८७४ ।
३. प्रोरिआसवेस, १९११-१२, पृ० ५४ । ४. वही ।
५.
वही ।
६. वही ।
७.
नाजैलेस, क्र० ७७३ ।
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