SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 80
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैनधर्म की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि : ५७ शताब्दी के प्रारम्भ में अंचल गच्छ के कवि जगलाभ ने "जिनाज्ञा हुण्डी' सिरोही में, १६२६ ई० में सिरोही के आदीश्वर मन्दिर में तपागच्छीय गुणविजय ने "विजय प्रकाश रास'' तथा १६९० ई० में सिरोही में मेघविजयोपाध्याय ने “अहंदगीता" नामक संस्कृत रचना का प्रणयन किया ।' (५) जैसलमेर क्षेत्र में जैन धर्म भाटियों के उदार संरक्षण में १७वीं व १८वीं शताब्दी में भी इस क्षेत्र में जैन धर्म प्रगतिशील एवं समृद्ध रहा । १६०६ ई० में पार्श्वनाथ मन्दिर के स्तम्भ की प्रतिष्ठा सम्पन्न हुई। १६१५ ई० में कल्याणदास के विजयी शासनकाल में जिनसिंह सूरि ने जिनचन्द्र सूरि की पादुका निर्मित करवाई।३ १६१६ ई० में मन्त्री टोडरमल ने एक उपासरा निर्मित करवाया।४ १६२१ ई० में जिनसिंह सूरि जैसलमेर आये और लोद्रवा से लाई गई चिंतामणि पार्श्वनाथ की प्रतिमा को समारोहपूर्वक "लक्षणविहार' मन्दिर में प्रतिष्ठित किया।" बुद्धसिंह के शासनकाल में गंगाराम ने अपने परिवार के साथ १७१२ ई० में तत्त्वसुन्दर गणि के सदुपदेशों के प्रभाव से प्रतिमाओं की स्थापना की अखईसिंह के शासनकाल में १७४९ ई० और १७५५ ई० में जिन उदय सूरि को पूज्य पादुका का निर्माण, उनके शिष्यों के द्वारा करवाया गया । मूलराज भाटी ने भी जैन मत को संरक्षण दिया। १७६८ ई० में जिनयुक्त सूरि का स्तूप बनवाया गया । १७३३ ई० के अभिलेख में जिनकुशल सूरि के स्त्प के पास दीविकाओं के निर्माण का उल्लेख है। यह स्तप जिनचन्द्र सूरि की सत्प्रेरणा से संघ के द्वारा स्थापित किया गया था।° १७८६ ई० में धम्म पादुका बनवाई गई, जिसका स्थापना समारोह पं० रूपचन्द्र के द्वारा सम्पन्न करवाया गया ।११७८४ ई० में पण्डित वर्धमान के अवशेषों १. असावै, पृ० ४८-५१ । २. नाजलेस, ३, क्र० २५९५ । ३. वही, क० २४९७ । ४. वही, क्र० २४४७ । ५. वही, क्र०२४९८ । ६. वही, क्र० २५०१। ७. वही, क्र० २५०८ एवं २५०९ । ८. वही, क्र० २५०३।। ९ जैलेस, पृ० १२५ । १०. नाजैलेस, ३, क्र० २५०२ । ११. वही, क्र० २५१०। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002114
Book TitleMadhyakalin Rajasthan me Jain Dharma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajesh Jain Mrs
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1992
Total Pages514
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy