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________________ ५६ : मध्यकालीन राजस्थान में जैनधमं था, जहाँ किशोर सिंह पूरी निष्ठा से उसकी सेवा में था, तो भी बार-बार उनसे जवाब तलब किया गया कि शाही नीति के विरुद्ध मंदिर क्यों निर्मित करवाया जा रहा है, किन्तु स्थानीय अधिकारी मुगल साम्राज्य का अन्त निकट जानते हुये उसे वंचनापूर्ण प्रत्युत्तर भेजते रहे । बून्दी दिगम्बर एवं श्वेताम्बर दोनों सम्प्रदायों का क्षेत्र था । इस काल में यहाँ अनेक हस्तलिखित ग्रन्थों को प्रतिलिपियाँ तैयार की गयीं, जो यहाँ के ६ शास्त्र भण्डारों में सुरक्षित । यहाँ का पार्श्वनाथ मन्दिर, ओसवाल जाति के चोपड़ा रामलाल के द्वारा १६७७ ई० में निर्मित करवाया गया था । इस मन्दिर में अन्य स्थानों से लायी प्रतिमाएँ भी सुरक्षित रखी हुई हैं, जिनमें से प्राचीनतम १२७४ ई० की है । ऋषभदेव मन्दिर बाफना परिवार द्वारा बनवाया गया था । (४) सिरोही क्षेत्र में जैन धर्म : उत्तरमध्य काल में सिरोही क्षेत्र में जैन मत सदा की भाँति प्रगतिशील रहा । अखईराज के शासनकाल में वीरवाड़ा में १६६७ ई० में धर्मदास ने सिंहविजय की पादुका की स्थापना चातुविध संघ के साथ मिलकर करवाई । वीरवाड़ा "ब्राह्मणवाड़ा" का प्राचीन नाम है । १६६४ ई० में उदयमान और जगमाल ने इनके शासनकाल में क्रमश: आदिनाथ और शीतलनाथ की प्रतिमाओं का प्रतिष्ठा समारोह आयोजित करवाया । इसी समय सम्पूर्ण संघ ने पेसुवा नामक स्थान पर कुन्थुनाथ की मूर्ति का स्थापना समारोह धूमधाम से मनाया एवं १७१४ ई० में मानसिंह के शासनकाल में सूरि जी की पादुकाएँ पीथा के द्वारा स्थापित की गयीं ।" इन्हीं के शासनकाल में १७३० ई० में भट्टारक चक्रेश्वर सूरि ने अन्य आचार्यों के साथ मिलकर मदार में स्थापना समारोह सम्पन्न करवाया ।" सिरोही के माँकरोरा ग्राम के १७३३ ई० के लेख में रत्नसूरि, कमल विजय आदि साधुओं द्वारा मॉकरोरा में चातुर्मास व्यतीत करते समय श्रावक-श्राविकाओं द्वारा उनके प्रति की गई भक्ति का उल्लेख है । १° १७वीं १. प्रलेस, २, क्र० ४३८ । २. जैरा, पृ० १५३ ॥ ३. वही, पृ० १५४ ॥ ४. अप्रजैलेस, क्र० २९८ । ५. वही, क्र० २४३ । ६. वही, क्र० २५७ । ७. वही, क्र० ५०४ । ८. वही, क्र० १०१ । ९. वही, क्र० १०३ । १०. नाजैलेस, १, क्र० ९७०, पृ० २४९ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002114
Book TitleMadhyakalin Rajasthan me Jain Dharma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajesh Jain Mrs
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1992
Total Pages514
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size21 MB
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