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जैनधर्म की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि : ५५ इस काल में मेवाड़ क्षेत्र में कीर्तिसुन्दर कान्हजी ने "आपत्तिकुमार चोढालिया", "मॉकडदास कौतुक पच्चीसी" आदि ग्रन्थ तथा महाकवि दौलतराम कासलीवाल ने उदयपुर में रहते हुये १७३८ ई० में "जीवन्धरस्वामी चरित्र", १७४१ ई० में "अध्यात्म बारहखड़ो", "विवेकविलास" आदि रचनाएँ लिखीं। उदयपुर प्रवास के समय में हो इन्होंने कई ग्रन्थों के टब्बे, टीकाएँ आदि भी लिखीं।' (२) डूंगरपुर, बांसवाड़ा और प्रतापगढ़ राज्यों में जैनधर्म : ____ वागड़ प्रदेश में पश्चातवर्ती काल में भी जैन धर्म पर्याप्त समृद्ध रहा । देवली के एक जैन मन्दिर की दीवार पर उत्कीर्ण शिलालेख से ज्ञात होता है कि १७१५ ई० में महारावल पृथ्वीसिंह के शासनकाल में कस्बे के समस्त तेली, महाजन समुदाय के सारैया और जीवराज के आग्रह पर ४४ दिनों तक अपनी घाणियों को बन्द रखने के लिए तैयार हो गये थे। देवली के ही मल्लिनाथ मन्दिर के १७१७ ई० के अभिलेख में वर्णित है कि जब महाराजाधिराज महारावल पृथ्वीसिंह देवगढ़ पर शासन कर रहे थे और पहाड़सिंह उनके होने वाले उत्तराधिकारी थे, तब मल्लिनाथ का मन्दिर सिंघवी श्रीवर्ष के पुत्र वर्द्धमान और उसकी भार्या रुक्मिणी के द्वारा बनवाया गया था। महारावल सामन्तसिंह के शासनकाल में १७८१ ई० में आदिनाथ का मन्दिर धनरूप, मनरूप
और अभयचन्द्र के द्वारा निर्मित करवाया गया ।४ (३) कोटा क्षेत्र में जैन धर्म :
१७वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में औरंगजेब दक्षिण जाने के लिये इस क्षेत्र से होकर ही गुजरा था और उसकी फौज ने अपार विध्वंस लीला की थी। उसके बावजूद स्थानीय राजनयिकों के संरक्षण में जैन धर्म की प्रगति निरन्तर होती रही। दिगम्बर संघ के विभिन्न भट्टारक समय-समय पर इस क्षेत्र को अपने आगमन से पावन करते रहे । कोटा में श्वेतांबर सम्प्रदाय के स्थानकवासी मुनियों की गादी भी रही ।
१६८९ ई० में औरंगजेब के शासनकाल में कोटा का राजा, सामन्त किशोरसिंह चौहान था। इनके काल में कोटा क्षेत्र में सांगोद के एक धनी व्यापारी कृष्णदास ने खानपुर के निकट १६८९ ई० में एक जैन मन्दिर निर्मित करवाया और अपनी पत्नी व पुत्रों के साथ प्रतिष्ठा समारोह आयोजित करवाया।" इस समय औरंगजेब दक्षिण में १. महाकवि दौलत राम कासलीवाल, व्यक्तित्व एवं कृतित्व, पृ० ४२-४६, ८०,
१५०-२५२। २. एरिराम्यूअ, १९२१-२२ । ३. वही, १९३४-३५, क्र० १८ । ४. वही, क्र० २० । ५. जयपुर के जै० म० के यन्त्र का अभिलेख ।
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