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५४ : मध्यकालीन राजस्थान में जेनधमं
इसी वर्ष नाडलाई में सम्पूर्ण संघ के द्वारा एक प्रतिमा स्थापित की गई थी ।' आचार्य देवसूरि की गुण कीर्ति सुनकर महाराणा जगतसिंह ने अपने प्रधानमंत्री झाला कल्याण सिंह के द्वारा उन्हें उदयपुर में चातुर्मास व्यतीत करने हेतु निमन्त्रित किया था । " दिग्विजय महाकाव्य" से विदित होता है कि आचार्य देवसूरि ने निमन्त्रण स्वीकार किया और उदयपुर आगमन पर उनका राजकीय सम्मान के साथ भव्य स्वागत किया गया । उनके व्याख्यानों से अत्यन्त प्रभावित होकर राणा ने वरकाणा नामक स्थान पर प्रतिवर्ष होने वाले लोगों से वसूल किये जाने वाले कर और चुंगी आदि के लिये निषेधाज्ञा जारी कर दी । एक अन्य अध्यादेश के अनुसार पिछौला और उदयसागर झील से मछली या अन्य किसी जीवित प्राणी को पकड़ने की मनाही थी । प्रतिवर्ष भाद्रपद माह, महावीर जन्म माह और महाराणा के राज्यारोहण दिवस के दिनों में पशु वध का निषेध था । उसने राणा कुम्भाकालीन मनीचन्द दुर्ग पर निर्मित जैन मन्दिरों के जीर्णोद्धार का भी आदेश दिया एवं उदयपुर के जैन मन्दिर में ऋषभदेव की प्रतिमा का पूजन का आयोजन भी किया। महाराणा जगतसिंहकालीन मेवाड़ के देलवाड़ा ग्राम में १७४१ ई० में हेमराज ने एक जैन उपाश्रय बनवाया था । महाराणा राजसिंह के मुख्यमन्त्री दयाल शाह ने राजनगर में सुन्दर जैन मन्दिर निर्मित करवाया और १६७५ ई० में उसका प्रतिष्ठान समारोह विजयसागर सूरि से सम्पन्न करवाया ।" इन्हीं के शासनकाल में श्वेताम्बर सम्प्रदाय में स्थानकवासी शाखा में एक क्रान्तिकारी परिवर्तन हुआ । जोधपुर राज्य के कंटालियाँ ग्राम निवासी भोखणजी, रघुनाथ के शिष्य थे । उस समय राजनगर के श्रावकों में रघुनाथ जी के आचार-विचार सम्बन्धी मान्यताओं को लेकर काफी अन्तर्द्वन्द था । उनको समझाने के लिये १७५८ ई० में रघुनाथ जी ने भीखणजी के नेतृत्व में एक दल भेजा, किन्तु भीखणजी भी अपने गुरु के आचरण पर सहमत नहीं थे तथा शास्त्र सम्मत दृष्टि से विचार करने पर उन्हें आपत्ति प्रतीत हुई और इन्होंने अपने गुरु से सम्बन्ध विच्छेद कर १७६० ई० में "तेरापंथ " की स्थापना की । महाराणा अरिसिंह के काल में भीषण जी ने तेरापंथ के आचार्य के रूप में केलवा में १७६३ ई० में, राजानगर में १७६४ ई० में तथा पुनः केलवा में ही १७६८ ई० में चातुर्मास व्यतीत कर तेरापंथ का प्रचार-प्रसार किया
१. प्रोरिआस, वेस, १९०८-९, पृ० ४६ ।
२. सिजैसि ग्रन्थ १४ भूमिका ।
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३. राजपूताना के जैन वीर, पृ० ३४१ ।
४. ओझा मेवाड़ राज्य, पृ० ३०३ । ५. केसरिया जी तीर्थ का इतिहास, पृ० २७ ।
६. तेरापंथ का इतिहास, पृ० ४०-६६ ।
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