________________
५० : मध्यकालीन राजस्थान में जैनधर्मं
द्वारा लूटी गई १०५० प्रतिमाएँ वापस लाया था । सम्भवतः इस वक्तव्य में किंचित अतिशयोक्ति है, क्योंकि तुरासानखान का सम्भवतः अकबर से कोई लेना-देना नहीं था । बीकानेर दुर्ग के द्वार के पार्श्व में महाराजा रायसिंह के समय की, १५९४ ई० की एक प्रशस्ति में, रचयिता क्षेमचन्द्र का शिष्य जयिता नामक एक जैन मुनि वर्णित है तथा दुर्ग-निर्माण मन्त्री कर्मचन्द्र के निरीक्षण में सम्पन्न होने का भी उल्लेख है । कर्मचन्द्र ने लाहौर में जिनचन्द्र सूरि का 'युग प्रधान पदोत्सव' आयोजित करवाया था, जिसमें महाराजा रायसिंह ने कुंअर दलपतसिंह के साथ भाग लिया था और सूरि जी को बहुत से धार्मिक ग्रन्थ भेंट में दिये थे । जिनचन्द्र सूरि के पट्टधर जिनसिंह सूरि से महाराजा रायसिंह के अच्छे सम्बन्ध थे । इन्हीं के शासनकाल में हम्मीर ने अपने परिवार के सदस्यों के साथ नेमिनाथ की प्रतिमा स्थापित की थी ।
(७) जयपुर राज्य में जेनधमं :
जयपुर राज्य में कछावा शासकों के अन्तर्गत जैन धर्म उन्नति और समृद्धि को प्राप्त हुआ । राज्य में लगभग ५० जैन दीवान कार्य करते थे, जिनके संरक्षण में धार्मिक पुस्तकों की प्रतियाँ, मन्दिरों का निर्माण और प्रतिमाओं के प्रतिष्ठा आयोजन सम्पन्न हुये । इस काल में जयपुर राज्य की विभिन्न छोटी-छोटी रियासतों में शक्तिशाली ठाकुरों की जागीरदारी में भी जैन धर्म को पर्याप्त संरक्षण और प्रवर्द्धन प्राप्त हुआ । हिण्डौन के श्रेयांसनाथ मन्दिर की आदिनाथ एकतीर्थी के १४८५ ई० के लेख में राजा मानसिंह राउल का नामोल्लेख है ।४ १५३८ ई० में कर्मचन्द्र के शासनकाल में " भविष्यदत्त चरित्र" की प्रति लिखी गई थी ।" १५५९ ई० में नेमिनाथ मन्दिर में "पाण्डव पुराण" और "हरिवंश पुराण' ७ की प्रतिलिपियाँ तैयार की गई थीं । भारमल के उत्तराधिकारी भगवानदास के शासनकाल में मालपुरा में " वर्धमान चरित्र" की एक प्रति की रचना की गई थी ।" मानसिंह के शासनकाल में भी जैन धर्म ने निरन्तर प्रगति की । इनके शासनकाल में १५८८ ई० में मालपुरा के आदिनाथ मन्दिर में
१. बीजैलेस, पृ० २७ ॥
२. ओझा, बीकानेर राज्य, १, पृ० १७९ ।
३. बीजैलेस, पृ० ७।
४. प्रलेस, क्र० ८३३ ।
५. प्रस, पृ० १४८ । ६. वही, पृ० १२६ ।
७. वही, पृ० ७७ । ८. वही, पृ० १७० ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org