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४८ : मध्यकालीन राजस्थान में जैनधर्म
है, जिसमें एक कूप तथा दशावतार की प्रतिमाओं के निर्माण का भी उल्लेख है ।" १५२३ ई० की जैसलमेर की शान्तिनाथ मन्दिर की प्रशस्ति में, जयन्तसिंह के राज्यकाल में, उकेशवंशीय संघवाल गोत्र के संघी अम्बा के पुत्र संघी कोचर आदि के द्वारा संघ के साथ धर्म स्थानों की यात्रा की तथा उसके उपलक्ष्य में 'लहण' देने का उल्लेख है | 'कल्पसिद्धान्त' आदि धार्मिक ग्रंथों के लिखवाने व दान देने का भी इसमें वर्णन है । १५२६ ई० की जैसलमेर के शान्तिनाथ मन्दिर की एक अन्य प्रशस्ति में राजा जयन्तसिंह और कुंवर लूणकर्ण की दुहाई के पश्चात् उकेशवंशीय संखवाल आम्बा के पुत्र कोचर के द्वारा कोरंट नगर और संख्वाली गाँव में ऊंचे तोरण वाले प्रासाद बनवाने और आबू की संघ यात्रा में जाने का उल्लेख है । इसने अपना समस्त धन लोगों को दान देकर 'कर्ण' का स्थान प्राप्त किया। इसी के वंशज खेता ने जैसलमेर दुर्ग में अष्टापद तीर्थ प्रासाद १४७९ ई० में बनवाया था । इसने सुनहरी अक्षरों में कल्पसिद्धान्त की पुस्तकें भी लिखवाई थीं । १५९३ ई० में भीमसेन के शासनकाल में संघवी पासदत्त के द्वारा जिनकुशल सूरि की पादुका निर्मित करवाई गई ।"
( ६ ) जोधपुर और बीकानेर राज्यों में जैन मत :
।
जोधपुर और बीकानेर राज्यों में, मुख्यतः राठौड़ शासकों के संरक्षण में, इस काल में जैन मत बहुत पुष्पित एवं पल्लवित हुआ । इन क्षेत्रों के शासक जैनाचार्यों के प्रति श्रद्धालु एवं धर्म सहिष्णु थे । शासक आदर भाव से उनसे मिलते थे और राज्य में उनके आगमन पर उनका हार्दिक स्वागत किया जाता था जालौर की एक मस्जिद, जो मुसलमानों द्वारा तोड़े मन्दिरों की अवशिष्ट सामग्री से निर्मित है, में १२११ ई० का एक शिलालेख प्राप्त हुआ है । छः पंक्तियों वाले इस लेख में कांचनगिरि पर स्थित विहार और जैन मन्दिर के निर्माण का ब्यौरा है । लेख के अनुसार चालुक्य राजकुमार पाल द्वारा यहाँ एक विहार का निर्माण देवाचार्य की अध्यक्षता में १९६४ ई० में हुआ था । इसके पश्चात् १९८५ ई० में चहमानवंशीय समरसिंह देव की आज्ञा से भण्डारी यशोवीर ने इसका पुनर्निर्माण करवाया था । ११९९ ई० में यहाँ ध्वजारोहण, तोरण
१. नाजैलेस, पृ० ३५-४० ।
२. वही, क्र० २१५४ ।
३. गाओस, २१, अपे० ५ । ४. वही ।
५. नाजैलेस, ३, क्र० २४९४ । ६. राइस्त्रो, पृ० १०० ।
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