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जैनधर्म की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि : ४७
लक्ष्मण का उत्तराधिकारी वयरसिंह हआ। १४३६ ई० में पासद ने अपने परिवार के सदस्यों के साथ चिन्तामणि मन्दिर में सुपार्श्वनाथ की प्रतिमा की स्थापना, वयरसिंह के राज्यकाल में ही करवाई थी।' साह हेमराज और पूना ने १४३७ ई० में सम्भवनाथ का मन्दिर निर्मित करवाया था। इस मन्दिर का प्रतिष्ठा महोत्सव हर्षोल्लास 'पूर्वक १४४० ई० में आयोजित हुआ था। जिनभद्र सूरि ने सम्भवनाथ सहित अन्य ३०० मूर्तियों की स्थापना व प्रतिष्ठा यहाँ की थी। राजा वयरसिंह भी इस उत्सव में सम्मिलित हुये थे। इनके शासन काल में शाह लोला ने अपने परिवार के कई -सदस्यों के साथ पार्श्वनाथ को एक कायोत्सर्ग प्रतिमा १४४० ई० में स्थापित की । ३ चाचिगदेव, वयरसिंह का पुत्र एवं उत्तराधिकारी, १४४८ ई० में सिंहासनारूढ़ हुआ । इनके शासन काल में १४६१ ई० में सजाक, सचोहराज" और सज्जा ने क्रमशः नन्दीश्वर पट्टिका, शत्रुजय गिरनारावतार पट्टिका का प्रतिष्ठा महोत्सव जिनचन्द्र सूरि के द्वारा आयोजित करवाया।
देवकर्ण के शासन काल में भी जैन धर्म का तीव्र संवर्धन हुआ। इसके काल में सांवलेचा गोत्र के खेता और चोपड़ा गोत्र के पाँचा ने शान्तिनाथ और अष्टापद के दो प्रसिद्ध मन्दिर १४७९ ई० में निर्मित करवाये । सम्भवतः ये दोनों श्रेष्ठी परिवार आपस में सम्बन्धी थे। संघवी खेता ने अपने परिवार के साथ शत्रुजय गिरनार आदि तीर्थों की कई बार यात्रा की। उसने सम्भवनाथ मन्दिर की प्रसिद्ध तपपट्टिका का प्रतिष्ठा-समारोह भी सम्पन्न करवाया था। १४७९ ई० में पाटण के श्रेष्ठी धनपति ने इनके राज्यकाल में ही शान्तिनाथ की प्रतिमा का प्रतिष्ठा महोत्सव आयोजित कर, इसे पार्श्वनाथ मन्दिर में प्रतिष्ठित करवाया। इसी मन्दिर में १४७९ ई० में हेमा और भीमसी ने "जिनवरेन्द्र पट्टिका' निर्मित करवाई। इसी समय ऋषभदेव मन्दिर में मरूदेवी की प्रतिमा निर्मित करवाई गई।
१५२४ ई० में रावल जैत्र सिंह के आदेश से किये गये निर्माण कार्यों का उल्लेख
१. नाजैलेस, क्र० २११४ । २. वही, क्र० २१३९ । ३. वही, क्र० २१४५ । ४. वही क्र० २११६ । ५. वही, क्र. २११७ । ६. वही क्र. २११९ । ७. वही, क्र० २१५४। ८. वही, क्र० २१२० । ९. वही, क्र० २४०४ ।
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